Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हे कोकिल । एक गीत गा

 

हे कोकिल मन स्वर लुभावनी ।
आ,गीत एक गा मनभावनी ।।

 

 

गीत प्रेम का, हो उमंग गा ।
गीत मोद का, हो सुसंग का ।।
क्रीति-शौर्य सच राष्ट्रहित का ।
कर सृजन री नूतन कहानी ।।1।।

 

 

तू उन्मुक्त गगन विचरनें वाली ।
कुञ्ज-कुञ्ज , चह-चहानें वाली ।।
मन तेरे हैं निर्मल , चाहे तेरे हैं तन काली ।
अंतरिक्ष को है हर्षाती , वह तू विहंग सुहानी ।।2।।

 

 

 

डॉ.प्रमोद सोनवानी पुष्प

 

 

 


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