हे कोकिल मन स्वर लुभावनी ।
आ,गीत एक गा मनभावनी ।।
गीत प्रेम का, हो उमंग गा ।
गीत मोद का, हो सुसंग का ।।
क्रीति-शौर्य सच राष्ट्रहित का ।
कर सृजन री नूतन कहानी ।।1।।
तू उन्मुक्त गगन विचरनें वाली ।
कुञ्ज-कुञ्ज , चह-चहानें वाली ।।
मन तेरे हैं निर्मल , चाहे तेरे हैं तन काली ।
अंतरिक्ष को है हर्षाती , वह तू विहंग सुहानी ।।2।।
डॉ.प्रमोद सोनवानी पुष्प
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