देखो भाई यह दीपक ,
ढेरों खुशियाँ देती है ।
पल भर में दीप यही ,
बारिस दुःख की करती है ।।1।।
देखो तो दीपों का खेल ,
जीवन भी मोड़ देती है ।
यह जीवन है दीप समान ,
जो जलती-बुझती रहती है ।।2।।
जीवन की कैसी परिभाषा ,
इसमें छुपी आशा -निराशा ।
आशा सबकी है पिपाशा ,
"पुष्प " समझे निराशा की भाषा ।।3।।
डॉ.प्रमोद सोनवानी" पुष्प"
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