Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जीवन एक दीप

 

देखो भाई यह दीपक ,
ढेरों खुशियाँ देती है ।
पल भर में दीप यही ,
बारिस दुःख की करती है ।।1।।

 

देखो तो दीपों का खेल ,
जीवन भी मोड़ देती है ।
यह जीवन है दीप समान ,
जो जलती-बुझती रहती है ।।2।।

 

जीवन की कैसी परिभाषा ,
इसमें छुपी आशा -निराशा ।
आशा सबकी है पिपाशा ,
"पुष्प " समझे निराशा की भाषा ।।3।।

 

 

डॉ.प्रमोद सोनवानी" पुष्प"

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