Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पढ़कर जलाना पड़ा

 

 

कभी उसके शहर आये थे, आज उसे आना पड़ा ।
यही था वक्त का तकाजा,उसे भूल जाना पड़ा ।।1।।

 

 

ओ आये नहीं हम राह देखते रहे उसके ।
निराशा लिये इन आँखों में लौट जाना पड़ा ।।2।।

 

 

आँखों में दीदार की चाहत लिये चल पड़े थे ।
उसी दिन उसे शहर के कहीं दूर जाना पड़ा ।।3।।

 

 

चेहरे पर उदासी इस तन्हाई भरी आलम में ।
आँखों में नमीं-नमीं सी फिर भी मुस्कुराना पड़ा ।।4।।

 

 

एक शाम खत आई "पुष्प" बेरहम उस नाजुरा की ।
लिखी थी कुछ ऐसा की पढ़ कर उसे जलाना पड़ा ।।5।।

 

 

 

डॉ.प्रमोद सोनवानी पुष्प

 

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