कभी उसके शहर आये थे, आज उसे आना पड़ा ।
यही था वक्त का तकाजा,उसे भूल जाना पड़ा ।।1।।
ओ आये नहीं हम राह देखते रहे उसके ।
निराशा लिये इन आँखों में लौट जाना पड़ा ।।2।।
आँखों में दीदार की चाहत लिये चल पड़े थे ।
उसी दिन उसे शहर के कहीं दूर जाना पड़ा ।।3।।
चेहरे पर उदासी इस तन्हाई भरी आलम में ।
आँखों में नमीं-नमीं सी फिर भी मुस्कुराना पड़ा ।।4।।
एक शाम खत आई "पुष्प" बेरहम उस नाजुरा की ।
लिखी थी कुछ ऐसा की पढ़ कर उसे जलाना पड़ा ।।5।।
डॉ.प्रमोद सोनवानी पुष्प
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