हर रात इन आँखों से अश्क निकाले थे ,
क्षणिक हस्ती को कुछ देर संभाले थे ।
रुयत हुई नहीं थी और रुखसत करना पड़ा ,
कभी हर सुबह-शाम उन्हीं से उजाले थे ।।1।।
खांकिस्तर हो गयी चमनजार कुछ ही पल में ।
गुलिस्तां को हम बरसों जो दिल में पाले थे ।।2।।
रेजां पड़ी है अब तक जिंदगी के हर पन्नें ।
चंद लकीर हाथों से उनके खींच जाने वाले थे ।।3।।
बुझेगी कैसे "पुष्प" उन यादों के चिराग दिल से ।
हर कतरा साँसों के सब उसी के हवाले थे ।।4।।
रचनाकार - डॉ.प्रमोद सोनवानी पुष्प
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