मुक्तक
नीर बहाता,बचपन अपना, याद दिलाता।ं
खेलो खुलके, मत डर डर के, पाठ पढ़ाता
बचपन के , ये खेल सुनहरे, रोज सबेरे।
बोझ उठाता,झुक कर चलता,राह दिखाता।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
वरिष्ठ परामर्श दाता,
प्रभारी रक्त कोष
जिला चिकित्सालय, सीतापुर
9450022526
स्वरचित व मौलिक
सीतापुर
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