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Dr. Srimati Tara Singh
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बाट देखते पथिक की,देखे पति की राह

 

बाट देखते पथिक की,देखे पति की राह

मित्रों करभ दोहा छंद में प्रस्तुत है मेरी  एक रचना।

 बाट देखते पथिक की, देखे पति की राह।
 अब आंखें पथरा गईं, चाहे मन की थाह।

 रातें  कंटक सम हुईं, गाये बिरहा गीत।
 हिय पर लोटे साँप सी,  रोये मन के मीत।

 द्वारे पर आहट हुई ,छेड़े मन के तार।
  उमंग भर  दौड़ी चली ,देखे घर के पार।

 पूनम की अब चाँदनी, रोके प्रिय की राह ।
झंकृत वीणा जब बजी, छेड़े मन की आह।

 योगी चौखट पर खड़ा, दूर देश का मान।
 राधे की कब टेर सुन, राधा- वल्लभ जान।

मौलिक रचना।

डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
वरिष्ठ परामर्श दाता, प्रभारी रक्त कोष
जिला चिकित्सालय, सीतापुर।

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