बेबस सरकार
अम्बर भाई जगह-जगह शराब की नुक्कड़ दुकानें खुली है, किंतु आजकल बड़बड़ाते, लड़खड़ाते कोई बंदा दिखाई नहीं देता। अरसा हो गया इन शराबियों को बुरा भला कहे। नेक बंदों की पहचान करना मुश्किल हो गया है। अंबर भाई कहते हैं , आजकल पुराने आशिक और पुराने शराबी रहे कहां?जो बात बात पर झगड़ पड़ते थे ,नालियों में गिरकर रात बिताते थे ,कभी-कभार पुलिसिया नजर पड़ गई तो पहले अस्पताल में तीमारदारी कराते थे बाद में हवालात की हवा खाते थे। आजकल मेहनत कश मजदूर विदेशी शराब को हाथ तक ना लगाते हैं। अंबर – तो प्रवीण भाई प्रवीण -आज कल घर घर कच्ची पक्की शराब बनती है। सब ने रोजगार खोल लिया है ,अब तो, स्वदेशी का जमाना है ,मेक इन इंडिया, अब तो गांव गांव पुरवा पुरवा जमीन पर लौटने वालों की बाढ़ आ गई है। सुना है ,कच्ची शराब बहुत जानलेवा होती है। किंतु नशे के आगे व्यक्ति सोच विचार कहां करता है। प्रवीण भाई ने कहा- तो भाई ,यह शाम की दवा तो जान से भी महंगी पड़ती है, अंबर भाई ने हां में हां मिलाते हुए कहा- उस पर से पुलिसिया कहर जगह-जगह छापे मारकर गरीबों की आमदनी का जरिया भी छीन लेते हैं, सारे भट्टी घड़े नाश कर देते हैं ।प्रवीण भाई ने कहा- भाई ,शराब के ठेके तो सस्ते पड़ते हैं। जानलेवा तो नहीं होते स्वदेशी की मार शराबियों को जीने नहीं देती और जिंदगी पल पल मारती है।अंम्बर भाई ने कहा -बिहार की तरह सरकार यहां शराबबंदी लागू क्यों नहीं कर देती ?प्रवीण भाई -उत्तर प्रदेश एक तो बिहार राज्य से बहुत बड़ा राज्य है ।एक तो कानून-व्यवस्था व्यवस्था पर बहुत बोझ आएगा और अर्थव्यवस्था तो चरमरा ही जाएगी ।अंबर भाई तो इसका क्या उपाय है ?प्रवीण भाई -अंबर भाई , मुझे इसका बहुत रोचक उपाय मालूम है ।घर-घर सुबह शाम एक एक पैग शराब का बांटा जाए, इससे लोग दीर्घायु भी होंगे और मेहनत कश और सेहतमंद भी ।राजस्व की कमी नहीं रहेगी क्योंकि लत पड़ते ही सब शराब की दुकानों पर शराब वैसे ही खरीदेंगे जैसे चाय की दुकानों पर चाय के लिए भीड़ जमा होती है। कानून व्यवस्था सुधर जाएगी ,क्योंकि शराबी भाई अपनी बिरादरी में बढ़ोतरी देखकर राग देश भूल गलबहियां कर स्वदेशी के तराने गाएंगे ।ना कोई राजा होगा , ना कोइ रंक। सभी एक दरबार के हिमायती होंगे।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव व्यंग लेखक
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