Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भटके राही

 
दर दर भटके राह में,भूखा प्यासा आज।
कल का संचय कर सके,  बची नही अब आस।

रेल किनारे बैठ कर,करता है उपवास।
टुकडे टुकडे जिंदगी, करे सदा उपहास।

रोटी के टुकडे बिना,मरे न हिय की प्यास।
जीवन में संकट बिना,मिले न जीवन श्वास।

जीवन दुख मय हो गया, भाग्य कर्म का खेल।
भाग्य लिखा मिट ना  सका,हुआ कर्म का मेल।

करो दया सब जीव पर, भूखा मरे न कोय।
सुखी सभी होंगें तभी,सुख मय जीवन होय।

डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव," प्रेम"

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