Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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डिवाइडर(पारिवारिक कहानी)

 
डिवाइडर
 रात के अंधकार में रिमझिम बारिश की फुहार पड़ रही थी। एक वृद्धा  अपने आप को  समेटे  डिवाइडर पर विराजमान थी।

 कहा गया है ,कि,  जीवन का आवागमन मोक्ष प्राप्त होने तक जारी रहता है ।पाप पुण्य का हिसाब बराबर होते ही सांसारिक कर्मों से मुक्ति मिल जाती है ।
डिवाइडर पर बैठी वृद्ध महिला  न जाने कौन से पाप  का फल भुगत रही थी , कि, रात में अकेली अपने परिवार से दूर क्लेश में बैठी है।

 वृद्धा संपन्न परिवार की महिला थी, उसका पति ग्राम का प्रधान था ।उसकी समाज में अच्छी प्रतिष्ठा थी। चुनावी रंजिश में चुनाव के समय कुछ विपक्षी सिरफिरे लोगों ने ,प्रधान की हत्या कर दी ।चुनावी सरगर्मी के मध्य पुलिस ने कुछ अभियुक्तों को गिरफ्तार किया, किंतु ,वृद्धा का तो सुहाग उजड़ गया था। उसका एक मात्र बारह वर्ष का बालक था। अबोध बचपन अपनी मां के सहारे जीवन के पायदान पर कदम रख रहा था ।उसे राजनीति की समझ बिल्कुल ना थी। मां ही उसका सबसे बड़ा सहारा थी।

बालक का नाम चेतन था ।चेतन का पालन पोषण उसकी मां ने किया। उसे डिग्री कॉलेज भेज कर उसकी अच्छी शिक्षा का प्रबंध किया ।चेतन ग्रेजुएट होकर अपने गांव वापस आया। गांव में उसके पास कई एकड़ खेत , बाग बगीचे थे, जिन की देखभाल वह करने लगा ।मां निश्चिंत होकर अब बहू के सपने देख सकती थी। उसने निकट के ग्राम में अपनी बिरादरी में सुंदर सी कन्या पसंद की ।चेतन को भी कन्या सरिता की मोहक मुस्कान घर कर गई। दोनों में कुछ वार्तालाप हुआ, और ,दोनों एक दूसरे को अपना दिल दे बैठे। सरिता अधिक पढ़ी-लिखी ना थी ।उसने मिडिल स्कूल तक पढ़ाई की थी। उसके परिवार वाले कन्याओं को अधिक शिक्षित करने की अपेक्षा घर गृहस्ती में दक्ष करना अधिक पसंद करते थे ।सरिता व्यवहार कुशल थी। बड़ों का मान सम्मान करना ,उसे आता था ।

ग्रामीण समाज में पुरुष  वर्ग की श्रेष्ठता निर्विवाद रूप से देखी जा सकती है ।आधुनिक समय में ,जब हमारा संविधान लैंगिक समानता एवं बराबरी के अवसर प्रदान करने की बात करता है ,तब,उस काल में ग्रामीण महिलाओं की उपेक्षा दुखद है।

 चेतन और सरिता का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ ।सरिता के मायके वालों ने दहेज में खूब धनराशि ,गहने व उपहार देकर अपनी बेटी विदा की ।वह इस आशय से कि उसकी बेटी को ससुराल में कोई कमी नहीं होगी।  ससुराल में उसका सिर नीचा नहीं होगा।

 शिक्षित समाज में शिक्षा के साथ-साथ दहेज प्रथा एक अभिशाप है ।शिक्षित कन्या घर के लिए एक वरदान साबित होती है। वह न केवल अपने पति का सहारा बन सकती है किंतु, संकट के समय खड़े होकर ,उसे संकट से मुक्त करने की क्षमता भी रखी है ।शिक्षित कन्या हेतु दहेज का कोई अर्थ नहीं रह जाता है ।वह स्वयं अर्थोपार्जन कर सकती है ।

शनै:शनै: गृहस्थी की गाड़ी चलने लगी ।चेतन की मां सुंदर कुशल बहु पाकर अत्यंत खुश थी। बहू घर का सारा काम काज करती ।चेतन की मां पलंग पर बैठे बैठे उसे निर्देश देती  थी।

सरिता अब गर्भवती थी ।अब उसे घर का कामकाज करने में परेशानी हो रही थी ।उसकी सास काम ना पूरा होने पर, भाँति -भाँति के ताने देती। उससे सरिता मन ही मन क्षुब्ध रहने लगी। 

सरिता ने चेतन के कान भरने शुरू किये। सुबक सुबक कर उसने अपने हालात का वर्णन किया। उसने कहा  कि ,उसे सहारे की आवश्यकता है। अब तुम्हारी मां के ताने बर्दाश्त से बाहर हैं। मुझे मायके भेज दो ।
चेतन ने सरिताके हित में निर्णय लेकर, अपनी मां को बहू के निर्णय से अवगत कराया ।चेतन की मां ,इस परिस्थिति के लिए कतई तैयार नहीं थी। बहू की अनुपस्थिति में उसके सिर पर घर की पूरी जिम्मेदारी आने वाली थी ।उसने अपने स्वास्थ्य का हवाला देकर बहू को भेजने में असमर्थता जाहिर की। बहू ने खत लिख कर अपने हालात से मायके वालों को सूचित कर दिया। सरिता के पिता अपनी बेटी को लेने अकस्मात आ पहुंचे ।यह देखकर चेतन की मां नाराज हो गई। उसने खाना पीना छोड़ दिया और अनशन पर बैठ गयी।

 चेतन ने ,मां का यह रूप प्रथम बार देखा था। उधर सरिता का रो-रोकर बुरा हाल था।  चेतन के एक तरफ पत्नी का आग्रह तो दूसरी तरफ मां का पूर्वाग्रह था। सास और पत्नी के पाटों के बीच बेचारा चेतन हतप्रभ था। आखिर में, पत्नी का पक्ष लेते हुए उसने मां को समझाने की बहुत कोशिश की ,किंतु ,मां अपने निर्णय से टस से मस ना हुई। उसे चेतन का बहू का पक्ष लेना तनिक भी ना भाया। उसने उसी रात घर छोड़ने का निर्णय किया कर लिया ।घर में सरिता, उसके पिता और चेतन को अकेला छोड़ कर चेतन की मां रात्रि के अंधकार में एकमात्र चादर साथ लेकर घर से निकल गयी। उसने हाईवे के डिवाइडर पर अपना बसेरा बनाया बना लिया।

 जीवन का मार्ग भी एकल मार्ग तरह होता है ।डिवाइडर के एक तरफ आगमन होता है तो दूसरी तरफ गमन होता है ।जिंदगी के प्रारंभ में जब परिवार का निर्माण होता है ,तो, युवा वर्ग  में खुशियों का आगमन होता है। यह युवा वर्ग आगमन पथ का पथिक होता है। जीवन के उत्तरार्ध में वयस्क का गमन होता है। उम्र के इस पड़ाव को पीढ़ियों का अंतराल कहते हैं। बीच में उम्र का डिवाइडर दोनों पीढ़ियों में अंतर स्पष्ट करता है ।

आज चेतन और उसकी मां के मध्य यही डिवाइडर खड़ा है। जिसने दोनों पीढ़ियों में मतभेद जाहिर कर दिया है।

 प्रातः चेतन अपनी मां को ना पाकर उसे खोजने निकला ।हाईवे के डिवाइडर पर एक वृद्धा को भीगे बदन ठिठुरते देखा ।उत्सुकता वश उसने बुद्धा का मलिन चेहरा गौर से देखा। उसने पहचाना ,वह उसकी मां थी।वह अपनी मां के पास पहुंचा ,और, क्षमा मांगते हुए उससे घर चलने का आग्रह किया। काफी मान -मनोव्वल के पश्चात उसने घर चलना स्वीकार किया। दोनों मां-बेटे घर लौट आये।उसने अपनी मां की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी ली । बहू सरिता अपने पिता के साथ मायके चली गई थी। मां को बहू की खिलखिलाती हंसी, उसका चहचहाना याद  आ रहा था।  सूने घर के साथ उसके हृदय का एक कोना भी सूना हो गया था।

डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
वरिष्ठ परामर्श दाता, प्रभारी रक्त कोष
जिला चिकित्सालय, सीतापुर।
9450022526

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