Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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घनाक्षरी

 
मनहरण घनाक्षरी

घने घने उपवन ,मलय पवन संग,
छनी छनी धूप संग, बहती बहार हो।
बेल लतिकायें मानो,उलझी बयार संग,
शाख संग शाख मिले,वृक्ष घन राशि हो।
हरी हरी हरियाली,   बह रही जल राशि।
शस्यश्यामला धरा में , कलरव गान हो।
कोयल   यों कूक रही ,छेड़ कर मस्त  तान।
जन मन गाये गीत, वसुधा से प्यार हो।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव," प्रेम"
लखनऊ।

रूप घनाक्षरी 

हरी हरी  धरती है,हरे भरे उपवन,
कल कल बहते है, अविरल नदी ताल.
प्रेमी मनुहार करे, मन में विहार करें,
साथ में पहनते हैं , जन जन वनमाल।
हरी हरी दूब पर,  नित्य ही आराम करें
 नित्य प्राणायाम करें, वृद्ध, जन हर साल ।
भूमि है ये सुरभित, धन्य धरा धाम पर,
वसुधा के भाग्य में है,वसुधा का हर लाल।

डॉ० प्रवीण कुमार श्रीवास्तव.'प्रेम'

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