मित्रों ,भजन भक्ति योग का माध्यम है ।भक्ति योग याने ईश्वर के प्रति समर्पण है। शब्द को ब्रह्म कहा गया है, और नाद भी ब्रह्म है अतः शब्दों और नाद के मेल से हम ब्रह्म की प्राप्ति करते हैं ।भक्तिकाल में श्री चैतन्य महाप्रभु, मीरा, सूरदास जी, कबीर जी, रहीम जी ,आदि महाप्रभु का प्रभुत्व रहा है जिन्होंने भजन के माध्यम से अपने व्यक्तित्व को ऊंचाइयों तक सिद्धि तक पहुंचाया है। श्री रामचरितमानस में नवधा भक्ति में भक्ति एक ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम बताया गया है ।जो ईश्वर को अत्यंत प्रिय है ।सर्वोत्तम विषय यह है कि गृहस्थ आश्रम में रहते हुए हम भजन के द्वारा ईश्वर की प्राप्ति कर सकते हैं ।सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं ।मन की निर्मलता निश्छल व्यक्तित्व प्राप्त कर सकते हैं। ईश्वर को सर्वस्व समर्पित करके स्वयं उसका उपयोग प्रसाद रूप मेँ कर सकते हैं। अतः भजन मन वचन कर्म के द्वारा की गई साधना है। भजन के द्वारा हम साकार ब्रह्म की उपासना करते हैं ।जबकि योग मार्ग के द्वारा हम निराकार ब्रह्म की उपासना करते हैं। भजन भक्ति योग की सरल एवं सहज साधनाहै ।अतः सर्व स्वीकार्य है। मित्रों आप समस्त को ज्ञात है कि अहंकार सब बुराइयों की जड़ है। इसके द्वारा काम, क्रोध ,लोभ, मोह इत्यादि मानस रोग व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं। इन सब का निराकरण भजन के द्वारा ईश्वर को समर्पण करके किया जा सकता है। क्योंकि, समर्पण से अहम नष्ट होता है। "मैं" अर्थात कर्ता का भाव नहीं रह जाता है। इसलिए भक्ति योग अर्थात भजन ईश्वर की प्राप्ति का सर्वोत्तम माध्यम है।
मेरे विचार में भजन ईश प्रार्थना है। जिसके द्वारा हम सात्विक विचारों का आवाहन करते हैं, एवं नकारात्मक विचारों का परिमार्जन करते हैं। इस प्रार्थना में हम समर्पण भाव से भगवान को पुरुष स्वरूप मानकर प्रार्थना करते हैं, और अपने मन की शुद्धि कर अपने के मन को शांत करते हैं। अपने मन की व्यथा व दोष का निवारण करतेहैं।। यह हमारे आत्मविश्वास में सकारात्मक वृद्धि करता है ,एवं परिस्थितियों से सकारात्मक रूप से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है। अतः ईश प्रार्थना में चिंतन, विचार , और प्रार्थना का समन्वय साथ साथ होता है ,और हमारी चित्तवृत्ति शांत होती है ।धन्यवाद
सादर
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, "प्रेम"
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY