जनता का दुख दर्द जमा है, सुख चैन जमा हैं बैंकों में ।
जीवन का विश्वास जगा हैं, अवनि और अम्बरतल में।
रूपयों के लिये भीड़ हैं बैंको और ए0टी0एम0 में,
धीरज धरकर मन को शान्त कर भीड़ बढ़ी हैं बैंकों में ।
भीड़ देखकर पैर ठिठकते, आते ही बैंकों में ।
विश्वास और धैर्य छोड़ते साथ सभी का बैंकों में।
नमक, तेल पेट्रोल दवा सबकी आवश्यकता बैंको में,
एक हजार या दो हजार जो चाहे मिल जाये बैंकों में।
जनमानस की आवश्यकता, रूपया हैं बैंकों में ।
जीवन का उमंग उत्साह भरा हैं बैंकों में।
धक्कामुक्की, रगड़ा झगड़ा सब झेल रहे हैं बैंकों में।
तिल भर की जगह बची, कही नही हैं बैंकों में।
आपस का भाईचारा खूब निभाया बैंकों ने,
रूपया मिले ना मिले, साथ हमारा एकता हमारी बैंकों में।
भारत माता की जय विजय हमारी बैंकों में,
उल्लास खुशी से जमा हमारी जीवन की पूंजी बैंकों में।
कालेधन की काली छाया दूर करो इन बैंकों में।
समता की समरस छाया दो, बेकारी दूर करो, विवशता लाचारी दूर करो।
जीवन में धन की मांग चाहे पूरी न कर, आत्म विश्वास आत्म चेतना भरपूर देकर, जीवन का उत्साह बढ़ा दो,
नवजीवन का उपवास खत्म कर नवयुग का प्रारब्ध लिखों।
जीवन का अभाव खत्म कर नवयुग का आरम्भ लिखों।
डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
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