जीवन एक व्यापार हो गया ,
कृषक मौन , घर –द्वार बह गया ।
दाने –दाने को तरसे भाई ,
कातर नयनों से ताके काकी ।
शिशु रोवें , दुलरावे काकी,
काकी का संसार बह गया ।
जल जीवन मे , माटी का घर बार बह गया ।
जीवन एक व्यापार हो गया ।
वोट बैंक का राज हो गया ,
दाने –दाने तरसे दाता ,
नेताओ की हुई पौ –बारह ,
घोषणाओ का राज हो गया ।
जीवन एक व्यापार हो गया ।
डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
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