Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जीवन पथ के सुनहरे पल

 

मेंने जीवन के अनमोल पलों को सजोंया है,
स्वर्णिम अवसर पाकर मैने कुछ बोया है।
अपनी आॅखों में मैने कुछ सजोंया है,
नवसृजन हार नवजीवन का गीत भी मैने गाया है।
प्रिय का बारम्बार आलिंगन स्वीेकारा है,
जीवन मे मधुमास मयूरी नृत्य का सपना मैने भी देखा है।
जीवन के किस कोने से बज उठेगी मेरी षहनाई,
जीवन का श्रृंगार मैने भी देखा है।
जीवन पथ पर मंंिजल अभी अधूरी है,
दूर बहुत चलना है साथी,
बस साहिल की दूरी है।
मांझी नांव मझ धार में लेचल,
चाहे जितनी भी दूरी हो ।
जीवन के तट पर पहुॅचना अपनी भी मजबूरी हो,
मजिंल पाकर खुषी मनाना दूरी ही कितनी है,
बस अब पहुॅचे, बस अब पहुॅचे
यह बस समय की दूरी है।
जीवन के बाजार में मिलता सब कुछ है,
परन्तु तुम्हारा प्यार ही मेरे लिये सब कुछ है।
संगम पथ पर मिलो तुम्हारा स्वागत है,
गंगा जमुना सरस्वती की तरह बहो तुम्हारा स्वागत है।
मैं सागर की भांित सीना लेकर,
अलिंगन को तैयार तुम्हारा स्वागत है।
जीवन की झंकार तुम्हारा स्वागत है
दिल के अनहद नाद तुम्हारा स्वागत ह,ैं
मधुरस की बरसात तुम्हारा स्वागत है।
जीवन की मुस्कान तुम्हारा स्वागत है,
जीवन पथ के पथिक तुम्हारा स्वागत है,
जीवन पथ पर मिलों तुम्हारा स्वागत है।

 

 

कविता .... डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव

 

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