मुक्तक,मित्रों सादर समर्पित है।
श्याम राधा कान्ह राधा आइये।
प्रेम राधा काम आधा पाइये।,
सगुण मन से प्रेम निश्छल सीख कर,
कृष्ण राधे गोप राधे गाइये।
गोप ग्वाले, ब्रज कुमारी साज है।
गोप गोपी दृग तुम्हारी राज हैं।
रास लीला में नचाते राधिका।
गोपियों संग ब्रज बिहारी आज हैं।
श्याम श्यामा मन बसे उर गाइये।
कान्ह राधा हिय बसे गुर आइये
रूप रस का ध्यान ज्ञानी मे समा ,
ब्रज कुंवारी में मधुर सुर पाइये।
श्याम नाचे राधिका गोपाल से।
धेनु नाचे बांसुरी की ताल पे।
मोहते मन गोप गोपी मानिये,
"प्रेम" राधा संग ब्रज भूपाल के।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
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