Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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लालिमा है ऊर्ध्व मुखी

 
विजया घनाक्षरी

लालिमा है ऊर्ध्व मुखी, सुंदर सहज सुखी,
दे रहा वियोग दुखी, तन-मन वार करे।
सांसों का है मोल करे, मीठी बोली  दुख हरे।
मीत से जो नूर झरे, चितवन वार करे।
माथ कुमकुम सजे, पायल की धुन बजे,
तन-मन करे मजे, पिय-हिय हरे भरे।
झूम झूम मन करे, गायें गीत रस भरे।
गीतों से जो रस झरे, सुखी करे पीर हरे।

--डॉ० प्रवीण कुमार श्रीवास्तव 'प्रेम'


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