विजया घनाक्षरी
लालिमा है ऊर्ध्व मुखी, सुंदर सहज सुखी,
दे रहा वियोग दुखी, तन-मन वार करे।
सांसों का है मोल करे, मीठी बोली दुख हरे।
मीत से जो नूर झरे, चितवन वार करे।
माथ कुमकुम सजे, पायल की धुन बजे,
तन-मन करे मजे, पिय-हिय हरे भरे।
झूम झूम मन करे, गायें गीत रस भरे।
गीतों से जो रस झरे, सुखी करे पीर हरे।
--डॉ० प्रवीण कुमार श्रीवास्तव 'प्रेम'
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