पर्यावरण संरक्षण ।
अंबर भाई मेरे पड़ोसी हैं ।वह मेरे घनिष्ठ मित्र हैं ।उम्र में बड़े होने के कारण वह मुझको आदरणीय अग्रज भ्राता कहकर संबोधित करते हैं ।हम प्रातः एक साथ ही चाय नाश्ता करते हैं। घर के प्रांगण में ,सुंदर से बगीचे में, हम बैठकर प्रायः ही गुफ़्तगू करते हैं। चाय की चुस्की के बीच हमारा ध्यान पर्यावरण संरक्षण पर गया। तब मैंने अंबर भाई से कहा-
प्रवीण भाई- अंबर भाई !प्रातः के नरम प्रकाश में ,मंद मंद वायु की मध्य, अचानक गौरैया का चहचहाना याद आ गया। प्रांगण है ,प्रकाश है ,बाग है, किंतु नन्ही गौरैया लुप्त है। कुछ सूना सूना नहीं लगता? प्रांगण चहल पहल अब नहीं दिखाई देती।
अंबर भाई - सत्य कहा,अग्रजभ्राता! बाग बगीचे का संरक्षण कीटनाशकों द्वारा किया जाता है। हमारे प्रिय पक्षी इन विषैले फ़लों का सेवन कर अ काल ही काल के गाल में समा रहे हैं। आजकल जैव उर्वरक का उपयोग नहीं के बराबर देखने मिलता ।पूर्व में, गोबर की खाद ,कंपोस्ट खाद इत्यादि उर्वरक ,पशु पक्षियों के संरक्षण में महती भूमिका निभाया करते थे ।
अंबर भाई --हां भ्राता! गौरैया गोबर खाद व कंपोस्ट खाद डालने पर भूमि से दाना चुग चुग कर सारा प्रांगण संगीतमय कर देती थी।
प्रवीण भाई --हां भ्राता !आज कल जंगल , गाजर मूली की तरह काटे जा रहे हैं। कंक्रीट के जंगल विस्तार ले रहे हैं ।उनके मध्य उपस्थित छुटपुट हरीतिमा सारे शहर की हरियाली की आवश्यकता की पूर्ति नहीं करती। अंबर भाई -ऐसा लगता है भ्राता , मनुष्य वृक्षों को काट कर, अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहा है। हम शुद्ध प्राण वायु हेतु पल-पल तरस रहे हैं। इन जंगलों के कटने से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है। बंजर भूमि और रेतीली भूमि का विस्तार हो रहा है ।धूल का उठता को ग़ुबार ,कल कारखानों का असीमित धुआं, वायुमंडल को प्रदूषित कर रहा है। रासायनिक प्रदूषित जल ,नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं ।इससे जलीय जंतुओं को प्राणवायु की कमी हो रही है।
प्रवीण भाई -वृक्ष हमारे परम मित्र हैं। हम वृक्ष की पूजा करते आये हैं ।कुछ वृक्ष औषधीय, कुछ छायादार व कुछ फलदार होते हैं ।जो हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन जाते हैं।
अंबर भाई- हमारे वैज्ञानिक ,जगदीश चंद्र बसु ने सिद्ध किया था, कि ,वृक्ष हमारी तरह श्वसन करते हैं ।उन्हें सुख दुख का एहसास होता है ।अतः हमें वृक्षों का ध्यान रखना चाहिए ।जिससे वे प्रसन्न रहें ,और ,उनसे सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार हो सके ।जो हमारे जीवन को खुशियों से भर दे ।
प्रवीण भाई- बिल्कुल ठीक कहा अंबर भाई! हमें वृक्षों के सुख दुख का एहसास होना चाहिए ।किंतु, हम तो उनकी हरी-भरी लहलहाती संपदा पर कुठार घात करते हैं। वे जीव हैं ,उनमें भी गति है ,प्रजनन है, उत्सर्जन है, श्वसन क्रिया आदि है। ये जीवन के सतत लक्षण हैं।
अंबर भाई -जिस प्रकार ,वृक्षों के बिना पशु पक्षियों का जीवन संकट में पड़ सकता है ।उसी प्रकार मनुष्य का अस्तित्व वृक्षों के बिना नहीं रह सकता है ।वृक्ष मनुष्य जीवन के अभिन्न अंग है ।वृक्ष और मनुष्य एक दूसरे के पूरक है ।अतः वृक्षों पर आरा चलाने से पूर्व, यह आवश्यक है ,कि, हम उन वृक्षों के रोपण की व्यवस्था अन्यत्र करें ।उनकी सतत देखभाल करें ।जिससे हमारे मध्य वृक्षों का अभाव ना हो सके।
प्रवीण भाई -अंबर भाई! पर्यावरण की समस्या हल करने हेतु वृक्षों का संरक्षण अति आवश्यक है। जलवायु और भूमि के संरक्षण हेतु वृक्षों को काटे नहीं, बल्कि, वृक्षारोपण द्वारा हरियाली का घनत्व बढ़ाये।
प्रवीण भाई -अच्छा भाई !अब मुझे आवश्यक कार्य वश हिंदी सभा जाना है ।अतःअब चर्चा को विराम देना चाहिये।
अंबर भाई -जी अवश्य ,प्रणाम आदरणीय अग्रज !
प्रवीण -प्रणाम ,अनुज भ्राता!
कहानीकार डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव ,
वरिष्ठ परामर्शदाता, प्रभारी रक्त कोष, जिला चिकित्सालय, सीतापुर।
मोबाइल,9450022526
पता8/219 विकास नगर, लखनऊ।
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