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'प्रेम अंजलि'

 
दिल तक पहुँच रही कहानियाँ
'प्रेम अंजलि' है 21 कहानियों का संग्रह

कृति: प्रेम अंजलि (कहानी संग्रह)
कृतिकार: डॉ. प्रवीण कुमार श्रीवास्तव 'प्रेम' 
प्रकाशक: नव किरण प्रकाशन, बस्ती (उत्तर प्रदेश)
पृष्ठ : 100
मूल्य:  150 रुपये (पेपर बैक), 220 रुपये (हार्ड बाउंड)

समीक्षक: मुकेश कुमार सिन्हा

चिकित्सक का क्या काम है? सीधा सा उत्तर है, दवा-सुई से मरीजों की बीमारी को ठीक करना। लेकिन, इंसान के दिल की धड़कन और बुखार को नापने वाला वही चिकित्सक जब सामाजिक मुद्दों पर कलम को बेबाकी तौर पर गति दे, तो सहसा यकीन करना मुश्किल होगा न? चिकित्सक का सामाजिक मुद्दों पर लिखना ही बड़ी बात है, क्योंकि उनका तो ज्यादातर समय आला और थर्मामीटर पकड़ने में ही व्यतीत हो जाता है।

एक ऐसे ही चिकित्सक हैं-डॉ. प्रवीण कुमार श्रीवास्तव 'प्रेम'। उनकी 21 कहानियों से सुसज्जित किताब आयी है-'प्रेम अंजलि'। कहानी 'कहानी' की तरह है या नहीं, नजरअंदाज करता हूँ, लेकिन जिन भावों को उन्होंने रखने की कोशिश की है, वो दिल तक पहुँच रही है। कहानियों में विचार है, जिस पर 'वर्तमान' को सोचने की जरूरत है। उनकी कलम में कोई बनावटीपन नहीं है, बल्कि कलम ने सामाजिक यथार्थ को रखने की कोशिश की है।

अब सोचिये, पर्यावरण को लेकर चिंता जायज है या नहीं? आज पर्यावरण असुंतलन से हर जगह तबाही मची है। ऑक्सीजन पर आफत बन पड़ी है। पशु-पक्षी काल-कवलित हो रहे हैं। कहानीकार ने सच लिखा-'प्रांगण है, प्रकाश है, बाग है, मगर नन्हीं गौरैया नहीं है।' है न चिंता की बात। चिंता की बात तो यह भी है कि हमारी करनी कुछ है और कथनी कुछ! महापुरुषों के विचारों को कहाँ हम मानते हैं? आवश्यक है शिक्षा पद्धति में सुधार और बच्चों में नैतिक शिक्षा का भाव जगाना।

अंबर और प्रवीण के बीच संवादात्मक शैली में नौ कहानियाँ रची गयी हैं। पर्यावरण संरक्षण, कथनी और करनी, वृद्धाश्रम, कर्म और भाग्य, बेबस कबीरदास, मधुशाला, आतंकी, सर है आपका, हेलमेट भी आपका होना चाहिए, पीर परायी जानो रे एवं जमाखोरी में अंबर और प्रवीण के बीच के संवाद कहानी की कड़ी है। इन दो पात्रों की बात-चीत ने विचारों को छोड़ा है।

'एकल परिवार, आंग्ल भाषा शिक्षा का माध्यम, आधुनिकता की दौड़, पुत्र को पिता की अवहेलना करने पर विवश करती है, और वृद्धाश्रम की ओर संकेत करती है', 'मनुष्य को हमेशा शुभ कर्म, जीवों पर दया, असहायों की सहायता, अहिंसा, धर्म का पालन करना चाहिए, ताकि जीवन सुखमय हो' जैसे विचार उभरे हैं। संत कबीर की प्रासंगिकता और सार्थकता को नकारने पर चिंता है, तो सामाजिक समस्याओं के आतंकी रूप पर गुस्सा। मधुशाला में व्यंग्य है, तो जमाखोरी में जमाखोरों पर प्रहार।

'कृषक अंबर' आशावादी कहानी है। माना अँधेरा छाया हो, मगर एक-न-एक दिन अँधेरे को तो छँटना ही होगा, हम बस हार नहीं मानें। यदि अंबर परिस्थितियों से हार मान लेता, तो क्या उसकी गृहस्थी चल पाती? क्या कजरी विवाह बंधन में बंध पाती? इसलिए, भरोसा जरूरी है! आज बुरे दिन हैं, तो कल बेहतर दिन का आगाज़ जरूर होगा! 'उसने कहा' प्रेम कहानी है। बस से प्रारंभ हुई भेंट जीवन की सबसे अनमोल भेंट में बदल जाती है। रौशन हो उठता है विनय और शिखा का जीवन। 'माँ का उपकार' ही है कि श्यामू और मनोज शराब से तौबा कर लेता है।

'पंचायत' में मोंटू बाबू की सकारात्मक छवि प्रस्तुत की गयी है। काश! हर पंचायत में मोंटू बाबू जैसे सरपंच हो जाये, तो कभी भी किसी की हकमारी नहीं हो पायेगी! 'आखिरी दाँव' भ्रष्टाचार की पोल खोलती है। वहीं 'ना समझे वह अनाड़ी है' मानवता की वकालत करती है। आखिर भाषाओं को लेकर झगड़े क्यों? भाषाएँ तो सही राह दिखाती है। 'कर्तव्यनिष्ठ' संस्मरणात्मक कहानी है, तो 'साइबर रेड' युवा मन के भटकाव को कलमबद्ध की है। सच में, जब धन का केंद्र व्यक्ति, स्वार्थ व ऐश्वर्य हो जाता है, तो व्यक्ति का पतन निश्चित हो जाता है। लेकिन, सवाल है कि युवा पीढ़ी पैसे के पीछे क्यों भागने लगी है? क्यों गलत राह की ओर उनके पाँव हैं? क्या हम युवा पीढ़ी को नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ा सकते हैं? भारत की सभ्यता और संस्कृति से रू-ब-रू नहीं करा सकते हैं? यह विचारणीय प्रश्न है।

कहानीकार ने पात्रों के माध्यम से सकारात्मक संदेश छोड़ने की कोशिश की है, आत्ममंथन करना हमारा फ़र्ज है। दवा-सुई देने वाले कहानीकार ने तो अपना फर्ज निभाया है, अब अपनी जिम्मेदारी है कि हम भी फ़र्ज निभायें। कहानीकार ने तो आराध्य से अनुरोध किया-
वीणा सदा बजती रहे माँ, ज्ञान चक्षु मिले हमें
है प्रार्थना माँ से सदा, आशीष हमको दीजिये।

बतौर कहानीकार, डॉ. प्रवीण कुमार श्रीवास्तव 'प्रेम' की कहानियों का यह दूसरा संग्रह है। 'डागडर बाबू' होकर भी कलम पर अच्छी पैठ है। कहानियाँ संदेश छोड़ रही है, कहानियाँ विचारों को जन्म दे रही है। हाँ, कुछ कहानियों को और माँजने की जरूरत थी, प्रूव को सरसरी निगाह से देखने की आवश्यकता थी, फिर भी संग्रह पढ़ने योग्य है। पढ़ने योग्य इसलिए कि कहानीकार नब्ज पकड़कर बुखार नापने वाले हैं, जिन्होंने छोड़ा है विचारों का पुलिंदा!

कवि-साहित्यकार
सिन्हा शशि भवन
कोयली पोखर, गया-823001

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