Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्रेम अंजलि समीक्षा

 
समीक्षा-1
शुभाकांक्षा:

 

हमारे अग्रज डॉ० प्रवीण कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखित कहानी संग्रह प्रेम अंजलि अपने आप में उनकी एक विशिष्ट कृति है जिसमें प्रस्तुत की गयी विभिन्न मनोहारी कहानियों की छटा देखते ही बनती है| पुस्तक का आरम्भ हरिगीतिका छंद में आबद्ध मनभावन सरस्वती वंदना से हुआ है जिसमें उनकी धार्मिकता, भक्ति-भावना, सदाशयता, व सर्वकल्याणकारी भावना के दर्शन होते हैं| प्रवीण-अम्बर संवाद के अंतर्गत उनकी सारगर्भित कहानी ‘आतंकी’ में अम्बर भाई की ओर से लेखक द्वारा मानवीय मनोविकारों व मनोविज्ञान को समझते हुए अपने बच्चों का उचित मार्गदर्शन करने की अनुशंसा की गयी है, उनके अनुसार अपने पुत्रों का अपराध छिपा कर उसकी ढाल में अपराधी का संरक्षण सर्वथा अनुचित है| वास्तव में गैरकानूनी दबाव व राजनैतिक संरक्षण से परहेज ही हमारे बच्चों को आतंकी गतिविधियों में संलिप्त होने से बचा सकता है|

 

डॉ० साहब की आधुनिक कथावस्तु के अंतर्गत ‘साइबर रेड’ नामक कहानी का उद्देश्य हमारे समाज को को सचेत करते हुए उसका उचित दिशा में मार्गदर्शन है जिसके अंतर्गत वे कहते हैं कि यदि धन कम हो तो संतोष करना चाहिए अधिक हो तो  सामजिक व धार्मिक कार्यों में खर्च करना चाहिए किन्तु जब धन का केंद्र व्यक्ति, स्वार्थ व ऐश्वर्य होता है तो व्यक्ति का पतन निश्चित तौर पर हो ही जाता है| ‘कथनी और करनी’ के अंतर्गत वे कहते हैं कि मानसिक गुलामी हमारे अंतर में घर कर गयी है जिससे हम मुक्त होना नहीं चाहते जब अविश्वास झूठ और प्रपंच द्वारा फैलाये गए मायाजाल में घिरकर मनुष्य सत्य असत्य का निर्णय स्वयं न करके दम्भी लोभी व लालची व्यक्तियों पर विश्वास करने लगता है तब वह सच्चरित्र संतों की वाणी का सार ग्रहण कैसे कर सकता है| ‘अम्बर किसान’ में डॉ० प्रवीणजी कहते हैं कि यदि हम अपनी भारतीय संस्कृति पर गर्व करते हुए अपनी मातृभाषा का सम्मान करें तो जीवन में असफलता, निराशा व हताशा दूर होकर पारिवारिक सुख व सम्मान में कोई भी कमी कदापि नहीं हो सकती| आरम्भ, विकास, कौतूहल, चरमसीमा व अंत के मानदंड पर  इनकी प्रत्येक कहानी वास्तव में उत्कृष्ट है |

पात्र और चरित्र चित्रण की दृष्टि से वृद्धाश्रम, कर्म और भाग्य, पर्यावरण संरक्षण, विवश समाज व आख़िरी दांव, रतन बाबू मोहर्रिर, माँ का उपकार, बेबस सरकार, पंचायत, कामरेड, मेनहोल इत्यादि कहानियाँ अत्यंत प्रभावशाली हैं जिनमें से दो डाक्टरों व एक चतुर व चालाक व्यक्ति पर आधारित कहानी ‘आख़िरी दांव’ तो अपने आप में बेजोड़ ही है| विभिन्न देशकाल तथा वातावरण पर आधारित इनकी अधिकतर मनोहारी कहानियाँ संवाद या कथोपकथन के स्तर पर हमें अत्यंत प्रभावित करती हैं | आत्मकथात्मक व  रक्षात्मक शैली से युक्त इनकी अधिकतर कहानियों में कथानक संघर्ष की स्थिति को पार करते हुए विकास को प्राप्त कर कौतूहल को  जगाता हुआ, चरमोत्कर्ष तक जा पहुंचता है जो कि एक सफल कहानीकार का एक प्रमुख गुण है | लेखक का हिन्दी भाषा पर पूर्ण अधिकार है व समस्त कहानियों की भाषा सरल, सुस्पष्ट व विषय अनुरूप है|   

आज की विविध सामाजिक परिस्थितियोँ, जीवन के प्रति विशेष दृष्टिकोण, अनेक समस्याओं  का समाधान व जीवन मूल्यों का उद्घाटन इनकी कहानियों का प्रमुख गुण है| इनकी प्रत्येक कहानी पाठक के मन पर अद्वितीय व अमिट प्रभाव डालती है|

अंत में मैं इस उत्कृष्ट पुस्तक के लेखन हेतु डॉ० साहब की इस पुस्तक की सफलता की कामना करते हुए उन्हें अनेक बधाइयाँ प्रदान करता हूँ|

 

इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’

९१, आगा कालोनी सिविल लाइंस सीतापुर|

मोबाइल: ९४१५०४७०२०

समीक्षा-2
वैदिक काल से भारतीय संस्कृति सनातनता की पोषक रही है। साहित्य सनातन मूल्यों का सृजक और रक्षक की भूमिका में सत्य-शिव-सुन्दर को लक्षित कर रचा जाता रहा। विधा का 'साहित्य' नामकरण ही 'हित सहित' का पर्याय है. हित किसी एक का नहीं, समष्टि का। साहित्य का लक्ष्य क्रमश: सकल सृष्टि, समस्त जीव, मानव संस्कृति तथा उसकी प्रतिनिधि इकाई के रूप में व्यक्ति का कल्याण रहा है। लेखन की सार्थकता तभी प्रमाणित होती है; जब लेखन समाज के हित में होता है। 

प्रासंगिक लेखन वही है जो जनसमस्याओं को इंगित करते हुये जनसरोकारों से संपृक्त हो। इस दृष्टि से पेशे से चिकित्सक डॉ. प्रवीण कुमार श्रीवास्तव की नवकिरण प्रकाशन बस्ती से प्रकाशित पुस्तक प्रेम-अंजलि एक महत्वपूर्ण कार्य है।

पुस्तक में संवाद विमर्श शैली में लिखी गयी कहानियों में व्यापक विमर्श की पड़ताल की गई है। प्रामाणिक तथ्यों का विश्लेषण तथा सामयिक चिंतन का समावेश इस पुस्तक की विशिष्टता है। यदि यह कहा जाये कि पुस्तक में अन्तर्निहित कहानियां स्वयं में  सशक्त वैचारिक विमर्श हैं, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

प्रेम अंजलि पुस्तक में डॉ प्रवीण जी ने पाठकों को आतंकी, साइबर रेड, कथनी करनी, अम्बर किसान, वृद्धाश्रम, कर्म और भाग्य, पर्यावरण संरक्षण दिवस समाज, आखिरी दांव, उसने कहा, रतन बाबू मुहर्रिर, सर आपका है हेलमेट भी आपका होना चाहिए, पीर पराई जानो रे, कर्तव्यनिष्ठ, मां का उपकार, ना समझे वह अनाड़ी है, बेखबर सरकार, पंचायत, जमाखोरी, मेनहोल, कामरेड जैसी 21 सामयिक संवेदनशील विषयों पर केंद्रित कहानियों का एक शानदार गुलदस्ता सौंपा है।

डॉ श्रीवास्तव का लेखन जहाँ एक ओर जीवन के उद्देश्य और संस्कारों के प्रति जागरूकता पैदा करता है, वही मानवीय मूल्यों का परिष्कार करते हुए संवेदना से सीधा संवाद करता है। आपके लेखन में रिश्तों की विद्रूपता और सामाजिक व्यवस्था की विसंगति से जुड़ी मानवीय संवेदना भीतर तक आंदोलित करती है।

समाज को दिशा देना और सचेत करना लेखकीय कर्तव्य का प्रथम सोपान है। डॉ साहब ने लेखकीय कर्तव्य के साथ-साथ अपने मानवीय सामाजिक उत्तरदायित्व का भी पूर्ण निर्वाहन इस पुस्तक के माध्यम से किया है और इसके प्रमाण देती है पुस्तक में सम्मिलित कहानियां।

एक शानदार कृति के लिए डॉ. श्रीवास्तव जी को असीम बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएँ। हमें विश्वास है यह पुस्तक पाठकों द्वारा भरपूर सराही जाएगी और समीक्षकों का भी पर्याप्त स्नेह मिलेगा।

■नाम- संदीप मिश्र 'सरस' 
■कवि,साहित्यकार/समीक्षक
■संस्थापक/अध्यक्ष-साहित्य सृजन संस्थान
■साहित्य सम्पादक-दैनिक राष्ट्र राज्य
■पता-मोहल्ला-शंकरगंज,पोस्ट-बिसवां,जिला-सीतापुर(उ प्र)-(पिन-261201)
■मोबा【9450382515-वॉट्सऐप/वार्ता】【9140098712-वार्ता】



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