पृथ्वी
कुण्डलिया।
नारंगी पृथ्वी हुई, चंदा हुआ चकोर।
मंगल ग्रह की खोज में,आस रही झकझोर।
आस रही झकझोर, खोजने लैंडर आया।
पृथ्वी पर है जोर,लाल ग्रह में क्या पाया।
कहें प्रेम कवि राय,भटकते ग्रह चौरंगी ।
प्राण वायु ही मात्र, रगें पृथ्वी नारंगी।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
वरिष्ठ परामर्श दाता,प्रभारी रक्त कोष
जिला चिकित्सालय, सीतापुर।
मौलिक रचना।
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