पुष्प वाटिका में श्रीराम का समर्पण।
नजरों की परिभाषा समझो,चंचल चितवन वहाँ बसेरा।
नयनों की भाषा जो समझे,नयनों का है वही चितेरा।
नयनों की चितवन के कायल, राम वाटिका में अटके हैं।
पलकों के तीरों से घायल, राम सिया के मन भटके हैं।
पुष्प वाटिका की आशा में,नव जीवन का यहां सबेरा।
माँ अम्बे की अभिलाषा में,विधि का कैसा खेलम खेला।
नजरों की परिभाषा समझो,चंचल चितवन वहाँ बसेरा।
नयनों की भाषा जो समझे,नयनों का है वही चितेरा।
चंचल अलकों से देखा तो,राम जानकी को निहारते।
पलक झुका कर रही जानकी,आमंत्रण को स्वीकारते।
नेह निमंत्रण की भाषा ने ,भावी जीवन यहीं उकेरा।
चंचल नजरों ने जो फाँसा,राम हृदय में हुआ उजेला।
नजरों की परिभाषा समझो, चंचल चितवन वहां बसेरा।
नयनों की भाषा जो समझे,नयनों का है वही चितेरा।
धनुष भंग कर धनुष यज्ञ में, वो राम लखन थे अनुपम योद्घा।
दशरथ आये जनकपुरी में,शुभ मुहूर्त गुरु ने शोधा।
कवि तुलसी ने मूक प्रेम को, शब्दावली में यहीं पिरोया।
पुष्पार्पण करती सीता ने,अंतर्मन में पिय संजोया।
नजरों की परिभाषा समझो,चंचल चितवन वहाँ बसेरा।
नयनों की भाषा जो समझे,नयनों का है वही चितेरा।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
बलरामपुर
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