कलाधर घनाक्षरी।
सींच-सींच प्रेम बेल, रीझ-रीझ गोप खेल,
संग-संग प्रीत मेल, रास आज कीजिए।
खींचने लगी प्रवीन, कुंभ कूप से नवीन।
प्रेम बेल को कुलीन, सींच-सींच दीजिए ।
नंद गोप कृष्ण संग, *अम्बरीष* देव दंग,
शृंग-शृंग हो अनंग, प्रेम संग लीजिए।
गोप प्रेम कुंज-कुंज, हे दयालुता निकुंज।
ओजपूर्ण कुंज-कुंज, संग-संग पूजिए।
डॉ० प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
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