जीवनयुक्त केवल्य मुक्त ,अंतर्द्वंद युक्त है ,
सुख शांगुरुद्वा ति की खोज में , परेशान , हैरान मन है ।
मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारे सब बना डाले ,
सबको नमन करता हूँ , सुख की तलाश करता हूँ ।
छल –कपट से भरा ये , नाटकीय शहर है
सुख के आविष्कार में , अंतर्मुखी मन है ।
तृष्णा , स्पर्धा से भरा जीवन है ,
नित नयी खोज में ये भौतिक जीवन है ।
भौतिक जीवन है काम , क्रोध , लोभ मोह युक्त ,
आध्यात्मिक जीवन है सुख –शांति योग , साधना क्षमा युक्त ।
साकार हो या निराकार , ब्रह्म तो ब्रह्म है ,
जीव जन्म –दुख , कर्म –बंधन से युक्त है ।
कर्म –बंधन से मुक्त वही जीवन है , जिसका
डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY