Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

संस्मरण-गुरुवर शरणम् गच्छा

 
शिक्षक दिवस पर विशेष।

संस्मरण-गुरुवर शरणम् गच्छामि।

एक अमिट विश्वास, उत्साह एवं उमंग लिये वो दोपहर प्राथमिक विद्यालय शंकर गढ़ जनपद इलाहाबाद का सुनहरा पल था । शिक्षक संग विध्यार्थी अपना अटूट सम्बंध जोड़ कर अध्ययन रत थे ।अचानक सायं चार बजे घंटे की ध्वनि सुनायी पड़ती है । शोरगुल और भागदौड़ के माहौल में विध्यार्थी अपना –अपना बस्ता, स्लेट पट्टी लेकर जैसे बांध तोड़ कर भागे हों । अनुशासन के माहौल में अचानक तब्दीली आ गयी थी । बच्चे किलकारी मारते हुए मुख्य दरवाजे की ओर सरपट भाग रहे थे , और शिक्षक लंबी सी बेशरम की छड़ी लेकर प्यार से हरकते हुए उन्हे नियंत्रित करने की कोशिश मे लगे थे ।

 कुछ अनुशासन प्रिय बच्चे अपने एकमात्र प्रिय क्रीडा शिक्षक के साथ विध्यालय के खाली होने का इंतजार कर रहे थे । शिक्षक अपने –अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर रहे थे । हमारे क्रीडा शिक्षक का उत्साह देखते  बनता था । अनुभव ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया था ।उनका अनुभव कह रहा था कि पी ॰ टी ॰ कि तैयारी में उनका विध्यालय जनपद में उनका नाम रोशन जरूर करेगा । सभी विध्यार्थी कदमताल कर रहे थे । उनमे गज़ब का आत्म विश्वास था । सभी कुछ सामान्य चल रहा था । क्रीडा के अंतिम दौर मे पिरामिड बनाने कि प्रक्रिया प्रारम्भ हुई , इस प्रक्रिया मे, मुझे छ : बड़े बच्चों के ऊपर स्थित चार बच्चों के ऊपर चढ़ कर जयहिंद का नारा बुलंद करना था ।
उस दल में मैं सर्वश्रेष्ठ विध्यार्थी के रूप में चुना गया था , प्रक्रिया आरंभ हुई , मैंने जय हिन्द का तीन बार नारा बुलंद किया ।
अचानक मेरे एक साथी का एक पैर डगमगाया , तभी मेरे मन में कौतूहल जागा , मैंने सोचा इस ऊंचाई से कूद कर क्या मैं सुरक्षित बच सकता हूँ ?

मैं इतना स्वार्थी व निर्दयी अपने आप से हो जाऊंगा , किसी ने  नहीं सोचा  था । सारी मान्यताओं और आदर्श को ताक पर रख कर मैंने छलांग लगायी , और अपने शिक्षक के सुनहरे सपनों को चकनाचूर कर दिया।
शिक्षक स्तब्ध थे , उन्हे मानों लकवा मार गया था , अनायास हुए इस घटना क्रम में अपने प्रिय छात्र को गिरे हुए देख कर उनका सपना टूट कर बिखर गया था , उनका विश्वास खंड –खंड हो गया था ।
मैंने उठने का प्रयास किया । कुछ साथियों ने संभाल कर उठाया । वातावरण में शांति छा गयी थी ।संयत होने में उन्हे कुछ वक्त लगा । फिर उन्होने मेरा हाल –चाल पूछा । मामूली चोट आयी थी ,परंतु सभी अंग सुचारु रूप से कार्य कर रहे थे ।
उन्होने ईश्वर का धन्यवाद किया ,  अपनी नौकरी पर लगते ग्रहण के बारे में सोच- सोच कर उन्हे जो घबराहट हो रही थी , उस पर विराम लगा ।

तब, मैं मात्र दस वर्ष का  बालक था , जो इस कृत्य की गंभीरता को नहीं समझता था । मैंने गंभीर संकट में अपने प्रिय गुरुदेव को डाला था,इसका अंदाज मुझे तनिक भी ना था । आज से  मैं अपने विध्यालय का हीरो छात्र खलनायक छात्र की भूमिका निभा रहा था ।जो छात्र इस विध्यालय की शान में चार चाँद लगाने वाला था ।उस पर से गुरुओं का विश्वास डोल गया था। 
कुछ दिनों में मैं स्वस्थ हो गया । विध्यालय के प्रांगण में गुरुदेव अपने छात्रों का मार्ग दर्शन कर रहे थे , किन्तु, मैं उनमें कहीं नहीं था । यहाँ तक कि गुरुदेव का व्यवहार इतना कठोर हो गया  था ,कि उन्होंने  मुझे अपमानित कर छात्रों के दल से निकाल दिया गया ।
यह मेरे जीवन की ऐसी अभूतपूर्व घटना थी , जिसके लिए ना मैं माफी मांगने योग्य था , ना उसके लायक मुझमें समझ ही थी । मैं अंदर से अपमान एवं कुंठा से टूट गया था । किन्तु,मेरे अंदर का विध्यार्थी अभी जीवित था । वह मुझे हिम्मत बंधा रहा था, कि खेल में ना सही अध्ययन के क्षेत्र में अपनी शीर्षता बरकरार रख सकता हूँ ।जिसे मैंने निभाया ,और अपना खोया आत्म विश्वास पुन : प्राप्त किया ।
विधि को शायद यही मंजूर था, कि अपने प्रिय गुरु से छल करूँ । उनके विश्वास को ठेस पहुंचा था। मेरा जीवन खतरे में पड़ गया था । मेरे शिक्षक का भविष्य कुछ समय के लिए ही सही अंधकार मय हो गया था ।तभी से मेरे लिए शिक्षक का विश्वास , प्रेम , प्रशंसा ही सब कुछ है ।  मुझे,मेरे जीवन की सबसे बड़ी सीख एवं सजा अपने गुरु का विश्वास खो कर मिली थी , शायद जीवन के पथ पर बचपन की अठखेलियों के बीच जीवन का कटु सत्य मुझे ज्ञात हो गया था।
"गुरवर शरणम् गच्छामि।"

संस्मरण -डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
मुख्य चिकित्सा अधीक्षक,
संयुक्त जिला चिकित्सालय, बलरामपुर।
पोस्ट बनकटा, उतरौला रोड,
पिन-271201
9450022526 मोब.



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