Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कर्म और भाग्य का संबंध

 
विषय -कर्म और भाग्य का संबंध, और इसका मानव जीवन में महत्व।

 विधा- कहानी 

प्रातः के नर्म प्रकाश में बाग की हरियाली के मध्य, मंद- मंद बयार का आनंद लेते हुए मैं और मेरा घनिष्ठ मित्र अंबर साथ साथ बैठे हुए थे। अंबर और मैं बचपन के मित्र हैं ।यह संयोग है, कि, हमने एक साथ एक शहर में शिक्षा प्राप्त की, और साथ-साथ पारिवारिक दायित्वों का निर्वाहन कर रहे हैं ।अंबर ने अपने बचपन की यादों को कुरेदना शुरू किया, तो ,वार्ता इस तरह आरंभ हुई।

 अंबर जी - मित्र! स्मरण है ,हम प्राइमरी विद्यालय में साथ साथ पढ़ते थे। हमारा बचपन संघर्षों में व्यतीत हुआ। घर की पारिवारिक स्थिति कमजोर थी ।हम कभी-कभी एक जून भोजन पर निर्भर रहते, कभी कभी  केवल जल और मां के स्नेह भरे आश्वासन पर। महंगाई चरम पर थी, और आमदनी ना के बराबर। माता-पिता दिन रात एक कर किसी तरह दो जून के भोजन की व्यवस्था कर पाते थे।

 प्रवीण जी  -मित्र! मेरा बचपन खुशहाल था, पिता सरकारी नौकर थे। महीने में एकमुश्त वेतन मिलता था। अच्छे से हम लोगों का गुजारा होता था।

 अंबर जी- प्रवीण जी !मेहनत तो  हम दोनों करते थे ।कभी मैं कक्षा में अव्वल आता था ,कभी तुम ।

प्रवीण जी -यह सब हमारे पूर्व जन्म के संचित कर्मों का फल है। इसी को भाग्य कहते हैं ।

अंबर जी- भाग्य का हमारे जीवन में कितना महत्व है ?

प्रवीण जी- प्रारब्ध, पूर्व जन्म में किए गए अच्छे -बुरे कर्मों का संचित कर्म फल है। हमारे धर्म ग्रंथों में पूर्व जन्म का वर्णन किया गया है। अतः कई जन्मों के संचित कर्मों का फल ,हम वर्तमान जन्म में भोगते हैं।

 प्रवीण जी - मित्र !तुमने अवश्य पूर्व जन्म में अच्छे कर्म किए होंगे ,तभी अच्छे परिवार में जन्म लेकर अच्छे संस्कार ग्रहण किये  हैं। 

प्रवीणजी -मित्र अंबर!तुम्हारे द्वारा पूर्व जन्म में, कुछ  अनर्थ अवश्य हुआ होगा। जीव हिंसा ,क्रूरता का व्यवहार किया होगा । जिसके परिणाम स्वरूप   तुम्हें ,बचपन में कष्ट झेलने पड़े।


 प्रवीण जी- अंबर जी! आज तुम अपने कर्म के अनुसार परिवार के दायित्वों का सुख से निर्वहन कर रहे हो ।यह भी तुम्हारे प्रारब्ध का ही खेल है ।

अंबर जी- यह कैसे? मैंने बिना एक पल गंवाये प्रतिदिन समय का सदुपयोग किया है ।तब मुझे अच्छे दिनों का सरोकार हुआ है। यह सब मैंने अपने कर्मों के बल पर प्राप्त किया है ।

प्रवीण जी- इस जन्म में किए गए कर्मों को  क्रियमाण कर्म  कहते हैं । इन संचित कर्मों का फल अगले जन्म में प्राप्त होता है। मित्र !यह तुम्हारे पूर्व जन्मों के शुभ कर्म का फल है ,जो तुम्हारे बुरे  संचित  कर्मों का प्रभाव धीरे धीरे कम होकर नष्ट हो रहा है ।मैं तुम्हें ,उदाहरण देकर समझाता हूं। यदि किसी ने पूर्व जन्मो  में बुरे कर्म किए हैं, तो इस जन्म में उसे कर्म का बुरा प्रतिफल ही प्राप्त होगा,किन्तु, वर्तमान शुभ कर्मों  और प्रायश्चित द्वारा कर्म फल के  दंड की तीव्रता कम हो सकती है। यदि मृत्यु की संभावना है ,तो ,केवल नाम मात्र की चोट खाकर प्राण रक्षा हो सकती है। यही भाग्य और कर्मों का खेल है।

 अंबरजी - अर्थात प्रवीण जी! पूर्व जन्म में किए गए कर्मों का स्वभाव अपने भाग्य का निर्माण स्वत: करता है ।और इन्हीं संचित कर्मों का प्रतिफल हमारे अच्छे या बुरे भाग्य का निर्माण करता है ।जो हमें इस जन्म में भोगना पड़ता है ।

प्रवीणजी -हाँ मित्र!अब तुम समझ गए हो, कि, संचित कर्म औऱ प्रारब्ध कर्म हमारे जीवन में कितना प्रभाव डालते हैं ।अतः मनुष्य को हमेशा शुभ कर्म, जीवो पर दया,असहायों की सहायता, अहिंसा, धर्म का पालन  करना चाहिए, जिससे मनुष्य द्वारा अच्छे कर्मों का संचय हो ,और हमारे परिवार को सुसंस्कार और सौभाग्य की प्राप्ति हो।

अंबर भाई इस वार्ता से अत्यंत उत्साहित हुए ,उनका क्लेश दूर हो गया ,और उन्होंने खुशी-खुशी अपने मित्र को धन्यवाद देकर घर को प्रस्थान किया ।
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डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ परामर्श दाता, प्रभारी रक्त कोष
जिला चिकित्सालय, सीतापुर।261001
मोबाइल9450022526

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