कहानी- ना समझे वह अनाड़ी है बहुत समय पहले की बात है, सोनू और मोनू दो भाई थे ।दोनों बहुत प्रतिभाशाली थे, और नौवीं कक्षा में पढ़ते थे। उनमें कक्षा में अव्वल आने के लिए हमेशा होड़ लगी रहती थी ।एक समय की बात है, सोनू घर के छज्जे पर खड़ा कुछ सोच रहा था, उसकी आंखें कुछ खोज रही थी। अचानक मोनू ने आवाज लगाई बरखुरदर !कहां हो ,सोनू ने जवाब दिया, कुछ खोज रहा हूं मित्र। मोनू ने कहा- क्या गुम हो गया तुम्हारा? अबे !आर्यभट्ट की औलाद। क्या इनोवेशन चल रहा है ?यह कहते-कहते मोनू सोनू के समीप चला आया। मोनू ! मेरे भाई मेरी जिंदगी खो गई है, वह काली चमकीली आंखें, वो तराशा हुआ नाक नक्श, कान में झूमते कुंडल और उस हसीन हसीना को छूकर आती वह मंद बयार ,मेरे जीवन में प्यार की खुशबू भर देती है ।वह आज नहीं आई है ।महसूस कर रहा हूं जैसे कुछ खो गया है ,उसी को खोज रहा हूं। मोनू ने कहा – ओ! मेरे भाई ,मां की गोद में खेलते खेलते तू इतना बड़ा हो गया कि, माशूक़ की भाषा बोलने लगा ।अरे मेरे आर्यभट्ट !अपना दिल पुस्तकों में लगा तभी तेरा कल्याण हो सकेगा, तभी उसकी यादों के फूल खिल सकेंगे। सोनू ने कहा- दोस्त ! प्यार प्यार होता है वह स्वार्थी वासना की कुर्बानी मांगता है उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। सोनू – नहीं मोनू !मेरा दिल आज भी उसके लिए धड़कता है । इंसान सीमा में बंध सकता है ,परंतु प्यार की कोई सीमा नहीं होती है ।मेरे भाई! सोनू ने कहा -मोनू – उस प्यार को समेट कर रख ,वरना सूफी कलाम गाते गाते तेरी ट्रेन छूट जाएगी ।परीक्षा सर पर है ,इस प्यार भरे दिल को संभाल के रख ,तभी कुछ बन सकेगा । जब तेरी भाँवरे पड़ेगी , घर में किलकारियां गूंजेंगी। तब, यह जमीन आसमान सब प्यारा लगने लगेगा ।चल बहुत देर हो गई है ,हिंदी भाषा की तैयारी करनी है । हिंदी हमारी मातृभाषा है, याने मां के समान हमें इसकी देखभाल ,परवरिश, अध्ययन अच्छे से करना चाहिए जिससे हम मां एवं मातृभाषा के संरक्षक बन सके। मोनू ने कहा – हां, परंतु ,मौसी क्या बुरी है अगर मां हमारी देखभाल कर सकती है ,तो, मौसी भी कर सकती है ।सोनू ने कहा -अबे दार्शनिक की औलाद, यह पहेलियां क्या बुझा रहा है ।विस्तार से बता ,यह मां मौसी क्या है ? मोनू ने जो कहा उसने हिंदुस्तान की सच्चाई सामने रख दी।उसने कहा हिंदी हमारी मातृभाषा है । वैसे ही ,उर्दू जुबान एवं आंग्ल भाषा हमारी मौसी है यह भाषाएं आपस में बहनें हैं । इन भाषाओं के विवाद में पड़ कर हमें अपनी ही मां -मौसी के पवित्र रिश्ते को कलंकित नहीं करना चाहिए । जब हमें मां दूध पिलाती है तब घर में अगर, मौसी हो तो , वह हमारी देखभाल कर सकती है। भाषाओं की सीमा अनंत होती है। उसे व्यक्ति देश काल की परिधि में नहीं बांधा जा सकता । मेरे भाई भाषाओं के पचड़े में पड़ कर हम कहीं के ना रहे , ना घर के ना घाट के ,ना हम अपनी मातृभाषा का सम्मान कर सके ना माँ समान उर्दू एवं आंग्ल भाषा का । हमें अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। हमें अपनी मातृभाषा से प्यार है ।उसके ममता भरे आंचल एवं उसकी त्याग भावना एवं गैरों को अपना लेने की योग्यता पर हमें गर्व करना चाहिए ।हमारी भाषा सबसे वैज्ञानिक एवं तर्कसंगत है। किंतु समय समय पर उसका संपर्क विदेशी अन्य भाषाओं से भी हुआ है ।अगर ,यह सूफी संगीत दे सकती हैं। तो, विथोवन के संगीत की मधुर धुन भी सुना सकती हैं। यह हमारी अमानत है ,विरासत है ,यही हमारा इतिहास है ।जब भी मातृभूमि पर संकट आया है ।हमारी मातृभाषा कूटनीति की भाषा बनी है ।जब राज्य पर संकट आया राजनीति की भाषा बनी है। जब अंधविश्वास एवं कट्टरता का संकट आया व्यंग के रूप में समाज सुधारक बनी है । जब सुख की चाह में हम साथ चलने की कसमें खाने लगे ,तब सहिष्णुता की भाषा बनी है। जब हमारा राज्य प्राकृतिक संकटों में घिरा उदारता व करुणा की भाषा बनी है ।घर घर में श्रृंगार का रूप लेकर सुख का आधार बनी है । युद्ध की विभीषिका में वीर रस का उदाहरण बनी है । तूफान के गुजर जाने के बाद शांति व अमन चैन का गीत इसने ही गाया है ।नव रसों से सजी हमारी भाषा नव सृजन एवं अभिनव प्रयोगों से समृद्ध है । कभी छायावाद, कवि प्रगतिवाद ,कभी आधुनिकता ने हमारी मातृभाषा को समृद्ध किया है । विषय अंतर करते हुए सोनू ने कहा, मोनू कभी तुमने किसी युवती को श्रृंगार करके इंतजार करते हुए देखा है? प्रातः के उजाले में वह सुनहरी काया अपने स्वर्णिम आभा विखेरती ,बिखरे केशों को संवारती ,कुमकुम लगाकर छोटी सी बिंदी माथे पर सजाती , अपने मन में भविष्य का सपना संजोए अपने प्रियतम का आलिंगन कर उस से निवेदन करती है कि वह उसे निकट बस स्टॉप पर पहुंचा दे, ताकि , नौकरी सुचारू रूप से चल सके । मई-जून की दुपहरी जब अंगारे बरसा रही होती है ।जब तन के साथ मन भी उष्णता से झुलसने लगता है तब वह आशा करती है कि पति उसे लेने बस स्टॉप तक जरूर आया होगा ,तब, यही मातृभाषा अपने विभिन्न रूपों में उस पर मरहम लगाने के लिए उद्धृत होती है कोई मां कहती है -मेरी फूल सी बच्ची !धूप में कुम्हला गई। हाय ! भगवान से प्रार्थना करती है ,कि भगवान इसी सुखी रखे । तो उर्दू में माँ कहती है -हाय ! मेरी बच्ची , खुदा रहम करे ,मेरी बच्ची को खुश रखे ,इतनी धूप में मेरी बच्ची झुलस कर काली हो गई है। खुदा खैर करे ।आंग्ल भाषा में, उसकी मां कहती है । ओ माय बेबी गॉड ब्लेस यू ,वेरी टफ टाइम ,वेट, गुड टाइम विल कम वेन यू विल बी प्लीज ।गॉड इज ग्रेट !इन उदाहरणों ने सिद्ध कर दिया है कि मानवता की भाषा एक होती है ।सार्थक होती है ।उसे देशकाल एवं परिस्थितियों में नहीं बांधा जा सकता । ये दिल की भाषा है , जब मुखरित होती है, तब जुबान पर आ जाती है । कला संस्कृति के अनुसार इसके रूप अनेक हो सकते हैं परंतु, इनमे प्रतिस्पर्धा नहीं है ।ये एक दूसरे के पूरक होने हैं।यही सोच मातृभाषा एवं अन्य भाषाओं को सार्वभौमिक, सर्वकालिक व संपूर्ण बनाती है ।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव कहानीकार
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