भोर के धुंधलके में
अलसाई उषा ने
ज्यों ही
अपनी बाहें ऊपर कर
एड़ियां उचका
ली अँगड़ाई
कि रजनी बाला का सितारों-जड़ा
झीना झिलमिल आँचल
एक ओर जा पड़ा।
धानी-सी रानी प्रकृति ने
सुरमयी उजास का अंजन लगाया
क्षितिज के तकिये पर अधलेटे ही
अपने उनींदे रक्तिम नेत्रों को झपकाया।
पीली सरसों की चोली को
खींच तान संवारा।
फिर गहरे हरे पेड़-बूटों वाले अपने लहंगे की
सलवटों को किया सीधा,
कि सुनहरी पत्तियां
गोटे के तारों-सी
लहरा कर
बिखर-बिखर धरती पर आ पड़ी।
पोखर के दर्पण में निहारती
धानी-सी प्रकृति रानी ने
ज्यों ही रवि की लाल-लाल बिन्दिया को
अपने माथे पर सजाया,
दसों दिशाएं जगमगा हो उठी
लो, वासन्ती ऋतु का
नव-दिवस खिलखिलाया।।
डॉ प्रेमलता चसवाल 'प्रेम पुष्प'
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