(डॉ प्रेमलता चसवाल 'प्रेम पुष्प')
मिट्टी में मिटो तो सही
पल्लवित करती जाएगी प्रतिक्षण
अपने अणु-अणु से तुम्हारी क्षण भंगुरता को
संचरित करके नव ज्योत्सना से।
अंकुरित आशाओं के द्रुम दलों को सहेजती,
ममतामयी माटी
थाती है उन वंशजों की
जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी समेटते आए हैं -
उन्मुक्त उड़ानों के सृजनकारी उन्मेषों में
रचते रहे हैं अनकहे इतिहास
अणु से परमाणु तक के।
डॉ प्रेमलता चसवाल 'प्रेम पुष्प'
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY