लेखक: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
बिहार के मुख्यमंत्री ने आदेश दिया है कि बिहार में अगर शादी करनी है तो आपको पहले शपथ पत्र में लिखकर देना होगा कि यह विवाह बाल विवाह नहीं है और इसमें दहेज का कोई लेन-देन नहीं है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के तहत यह शपथ पत्र देना जरूरी होगा। हालांकि शपथ पत्र भरवाने का जिम्मा मैरेज हॉल के प्रबंधकों का होगा। बिना शपथ पत्र भरे मैरिज हॉल की बुकिंग नहीं हो सकती है। उल्लेखनीय है कि बिहार में आज भी 40 प्रतिशत बाल विवाह होते हैं और दहेज हत्या में बिहार का देश में दूसरा स्थान है।
मुख्यमंत्री की पहल नि:संदेह प्रशंसनीय होकर भी नाकाफी है। विचारणीय सवाल यह है कि बाल विवाह करने वाले लोग क्या मैरिज हॉल बुक करने में सक्षम होते हैं? यदि वाकई बिहार के मुख्यमंत्री सहित अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री भी बाल विवाहों को रोकने के लिये संजीदा हैं तो ऐसे फौरी तथा दिखावटी प्रयास करने के बजाय ऐसे व्यावहारिक कानूनी प्रावधान बनाकर लागू करें, जिनसे वाकई वाल विवाह रुक सकें। सरकार को सबसे पहले बाल विवाह के सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक कारणों को समझना होगा और उन कारणों का निवारण का वास्तविक निवारण जरूरी है। जिससे कोई भी माता-पिता बाल विवाह करे ही नहीं।
सभी राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार को मेरा एक सुझाव: बिहार के मुख्यमंत्री बाल विवाह के बारे में जो शपथ-पत्र भरवाने की जिम्मेदारी मैरेज हॉल के प्रबंधकों पर डाल रहे हैं, यदि ऐसा ही शपथ-पत्र भरकर उसकी तस्दीक करके विधिवत विवाह सम्पन्न करवाने की जिम्मेदारी विवाह सम्पन्न करवाने वाले पुराहितों और काजियों पर डाली जाये तो अधिक सकारात्मक परिणाम सामने आयेंगे। अत: बाल विवाह रोकने हैं तो काजी और पुरोहित को पाबन्द किया जाये और उल्लंघन करने पर हो कठोर सजा का प्रावधान। अन्यथा चोंचलेबाजी बंद हो।
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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