लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
इस बात में कोई दो राय नहीं कि पुलिस के बिना वर्तमान समाज में सब कुछ शून्य है। यदि एक घण्टे को भी पुलिस जाप्ता हटा लिया जावे तो मासूम, सभ्य और धार्मिक से दिखने वाले चेहरों की असलियत तुरंत सबके सामने आ सकती है।
जब भी दुर्घटना होती है, सामान्यत: पुलिस ही उपचार और जरूरी राहत प्रदान करने में अपनी अग्रणी भूमिका निभाती है। जब भी कहीं हमारे हकों पर बलात चोट चहुंचती है, हम पुलिस की ओर आशाभरी नजरों से देखते हैं। यह भी सच है कि पुलिस पर अनेक प्रकार के प्रकट और अप्रकट प्रशासनिक, राजनीतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दबाव रहते हैं।
इस सब को दरकिनार और नजरअन्दाज करके हर आम—ओ—खास की ओर से पुलिस का बेरोकटोक मजाक उड़ाया जाता है। पुलिस पर घटिया फब्तियां कसी जाती हैं और पुलिस को भ्रष्टाचार का अड्डा बताया जाता है। जबकि कड़वी हकीकत यह है कि पुलिस व्यवस्था के वजूद में होने के कारण ही हम सुरक्षित, संरक्षित और शान्तिमय जीवन जी पा रहे हैं।
मगर इस सबके उपरान्त भी पुलिस को यह अधिकार नहीं मिल जाता है कि वह असंवेदनशीलता की पराकाष्टा को पार करके सामूहिक बलात्कार की शिकार एक महिला से सवाल पूछे कि बलात्कार करने वाले मर्दों में से किस मर्द ने अधिक मजा दिया?
केरल तिरुअनंतपुरम से खबर मिली है कि अपने पति के दोस्तों द्वारा रेप का शिकार हुई महिला पर पहले तो पुलिस ने केस वापस लेने का दबाव बनाया। और जांच के दौरान पीड़िता से अवैधानिक सवाल पूछे गए। एक पुलिस अफसर ने पूछा- बलात्कार की घटना के दौरान सबसे ज्यादा खुशी तुम्हें किस शख्स ने दी?
ऐसे पुलिस अफसर सम्पूर्ण पुलिस को कटघरे में खड़ा कर देते हैं और ऐसे लोगों के कारण ही छोटे से बड़े सभी पुलिसकर्मी समाज की नजरों में घृणा के पात्र बन जाते हैं। जबकि वास्तव में कहराई में जाकर देखा जाये तो इसके पीछे मूलत: निम्न तीन कारण होते हैं : -
1. पुलिस सहित तमाम लोक सेवकों द्वारा अपनी पदस्थिति का दुरूपयोग करने की बेजा आदत और इस आदत के विरुद्ध आहत, अपमानित और पीड़ित लोगों का नतमस्तक रहना।
2. हीन यौन मनोग्रंथियों के शिकार लोगों को बिना जांच—पड़ताल के कानून के रखवाले की हैसियत मिल जाना।
3. लोक सेवकों/जनता के नौकरों को अपनी मालिक जनता से किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिये? इस बारे में समुचित शिक्षा और प्रशिक्षण का अभाव।
जब तक हम उक्त तीनों बातों सहित सम्बन्धित सभी पहलुओं पर गहराई से चिन्तन नहीं किया जायेगा, केवल आरोपियों को सजा देने भर से इस प्रकार की असंवेदनशीलता, तानाशाही, मनमानी, रुग्ण मानसिकता और अश्लीलता का समाधान सम्भव नहीं।
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