डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
हरियाणा के जींद से खबर मिली है कि गंगाजल की कावड़ लेकर आये दलितों को डिडवाड़ा गांव में मन्दिर पर गंगाजल चढाने से रोका गया। इस घटना के दो दिन बाद दलित समुदाय के लोगों की ओर से जींद के एसडीएम कार्यालय के समक्ष इस बात को लेकर प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शनकारियों की ओर से एसडीएम को ज्ञापन सोंपकर कानूनी कार्यवाही की मांग की गयी। जिस पर हमेशा की भांति एसडीएम की ओर से जांच कर आवश्यक कार्यवाही करने का आश्वासन दिया गया। आजादी के पहले और आजादी के बाद दलितों के साथ घटित यह कोई पहली और अन्तिम अपमानकारी घटना नहीं है। लेकिन शुरू से आज तक जांच हो रही हैं और कार्यवाही के आश्वासन दिये जाते रहे हैं। कार्यवाही क्या हुई? आज तक तो पता नहीं चला!
इस घटना से जुड़े कुछ विचारणीय सवाल:—
1. दलितों को उन मन्दिरों में जाने की क्या जरूरत है, जिनमें उनको जाने नहीं दिया जाता है?
2. यदि मन्दिरों में जाना अनिवार्यता है तो फिर एसडीएम को ज्ञापन क्यों? पुलिस थाने में अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के तहत मुकदमा क्यों न दायर किया जावे?
3. यदि दलितों को मन्दिरों की व्यवस्था ही मंजूर है तो फिर मन्दिरों के मालिक पुजारियों और पुरोहितों के आदेशों का पालन क्यों न किया जाये?
4. मन्दिर वो स्थान है जो दलितों के सम्मान के लिये नहीं, बल्कि दलितों के अपमान के केन्द्र हैं। फिर भी दलित अपमानित होने के लिये लगातार मन्दिर की चौखट पर मत्था टेकने को बेताब है! इस मनोस्थिति का निवारण दलित नेतृत्व क्यों नहीं करता?
5. संविधान के अनुच्छेद 13, 14, 17 एवं 21 के क्रियान्वयन के लिये सरकार और दलित नेतृत्व संजीदा क्यों नहीं?
लेखक परिचय : राष्ट्रीय प्रमुख—हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन (अनार्यों के हक की आवाज)—9875066111
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