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देश में संविधान लागू है, कानून का राज है और पहले से अनेक सामाजिक संगठन संचालित हैं, फिर भी एक और नया संगठन, आखिर क्यों? यहाँ यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन की जरूरत क्यों?
क्या हम सब के लिए गम्भीर विचारणीय विषय नहीं है कि अब किसान नाम के लिए ही अन्नदाता रह गया है! कारखाने लगाने की जरूरत से बीस तीस गुना अधिक खेती की जमीन किसानों से ओनेपौने दाम पर छीनकर कार्पोरेट घरानों और विदेशी कम्पनियों को भेंट की जा रही हैं! असंवेदनशील सरकारों द्वारा कृषिबीमा के नाम पर बीमा कम्पनियों का संरक्षण और किसानों का भक्षण जारी है! दुष्परिणामस्वरूप हर दिन किसान मर रहे हैं।
देश का सबसे बड़े वंचित वर्ग ओबीसी का विधायिका में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना तो बहुत दूर, सरकारी नौकरियों में ओबीसी की वास्तविक जनसंख्या से आधा भी प्रतिनिधित्व/आरक्षण नहीं दिया जा रहा है और ओबीसी को पदोन्नति में आरक्षण की कोई व्यवस्था तक नहीं!
वास्तव में कड़वा सच तो यह कि ओबीसी में शामिल जातियों का वर्गीकरण जानबूझकर इस प्रकार से किया गया है कि ओबीसी जातियां आपस में ही लडती रहें और कभी भी एकजुट नहीं हो सकें!
जबकि इसके ठीक विपरीत आर्य जिनकी कुल आबादी बमुश्किल दस फीसदी होगी, वे नब्बे फीसदी सत्ता और संसाधनों पर स्थायी रूप से काबिज हैं! यही मूल वजह है, कि जाति आधारित जनसंख्या के आधिकारिक आंकड़े सार्वजनिक नहीं किये जा रहे हैं!
व्यवस्था पर काबिज आर्यों की यह बहुत गहरी साजिश है! जिसका सबसे बड़ा सबूत संविधान के अनुच्छेद तेरह के होते हुए मनुस्मृति सहित अनेक संविधान विरोधी और अमानवीय कथित धर्मग्रंथों का प्रकाशन, विक्रय और पठन-पाठन जारी रहना और इस मामले में न्यायपालिका, जन प्रतिनिधियों एवं मीडिया की चुप्पी अनेक सवाल खड़े करती है!
क्षत्रियों का इक्कीस बार सर्वनाश करने वाले संसार से सबसे बड़े और क्रूरतम हत्यारे परशुराम को धार्मिक आतंक के जन्मदाता मनु को सार्वजनिक रूप से भगवान की संज्ञा दी जा रही है! संसार के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी एकलव्य से धोखा करने वाले द्रोणाचार्य को महागुरू और निहत्थे मोहनदास करमचन्द गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम को अपना आदर्श मानने वाले खुद को राष्ट्रभक्त घोषित कर चुके हैं! ऐसे लोग या तो खुद ही या अपने गुर्गों के मार्फ़त इस देश कि सत्ता और व्यवस्था को संचालित कर रहे हैं!
संसद और संविधान की सामाजिक न्याय की पवित्र भावना और लोक कल्याणकारी अवधारणा को दरकिनार करते हुए न्यायपालिका 1951 बार-बार और लगातार आरक्षण को कमजोर करने वाले निर्णय सुनाती आ रही है! माधुरी पाटिल केस में एक-एक आरक्षित को जाति प्रमाण पत्र जारी करने से पूर्व अपराधियों की भांति उसकी जाति की छानबीन और परीक्षण करने का निर्णय सुनाने वाली न्यायपालिका आज भी सम्पूर्ण रूप से आर्यों और अंग्रेजी के शिकंजे में कैद है!
आम और ख़ास के लिए न्याय की सोच और भाषा बदल जाती है! आरक्षित वर्गों का प्रशासन में प्रतिनिधित्व करने के लिए चयनित, आरक्षित वर्गों के उच्च पदस्थ लोक सेवकों को #आर्यों द्वारा अपने शिकंजे में कैद करके, आरक्षित वर्गों के हितों को संरक्षित नहीं होने दिया जा रहा रहा है! संविधान के विपरीत अजा एवं अजजा के लोक सेवकों को प्रथम श्रेणी मिलने के बाद पदोन्नति में आरक्षण से मनमाने तरीके से वंचित किया जा रहा है!
सरकारी सेवाओं को ठेकेदारी और आऊटसोर्सिंग के हवाले करके आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षित हजारों निम्न श्रेणी के पदों को परोक्ष रूप से समाप्त किया जा रहा है!
सरकारी विभागों में आरक्षित वर्गों के रिक्त पदों को दशकों तक दुराश्यपूर्वक रिक्त रखने वाले अनारक्षित वर्ग के उच्चाधिकारियों के विरुद्ध किसी तरह की कानूनी कार्यवाही नहीं करके, ऐसे अपराधियों को सरेआम असंवैधानिक कृत्यों के लिए संरक्षण प्रदान किया जा रहा है!
भ्रष्टाचार, अत्याचार, तानाशाही और मनमानी चरम पर है, लेकिन जिम्मेदारी, उत्तरदायित्व और त्वरित दांडिक कार्यवाही की कोई पुख्ता और असरकारी व्यवस्था नहीं है!
नौकरशाही विभागीय अनुशासनिक कार्यवाही की ओट में बड़े-बड़े अपराधों को अंजाम देकर भी सजा से बची रहती है!
इस सब का मूल कारण सत्ता उन वर्गों के लोगों के हाथ में होना है, जिनकी देश की आजादी में कोई भूमिका नहीं थी! जिन्होंने आजादी से पहले भी लोगों का शोषण किया और उनके वंशज आजादी के बाद भी देश की जनता का शोषण कर रहे हैं!
बांधों के नाम पर न्याय से वंचित, शोषित और दमित आदिवासियों के पूर्वजों की शमशान भूमि और कुल देवताओं को जलमग्न करके उनके पुनर्वास की कोई सकारात्मक योजना नहीं बनाई जाती, बल्कि न्याय मांगने वालों को नक्सली घोषित करके बेरहमी से मारा जा रहा है! आरक्षित वर्गों के जन प्रतिनिधि, वास्तव में जन प्रतिनिधि नहीं, बल्कि दल प्रतिनिधि बन चुके हैं! जिनके लिए जनता के दुःख और दर्द की कोई परवाह नहीं, बल्कि उनको अपनी पार्टी के हाई कमान के आदेशों की पालना की चिंता अधिक सताती रहती है!
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में जाने जाना वाली प्रेस, मनुवादियों और कार्पोरेट के शिकंजे में आकर अब मीडिया बन चुकी है! अर्थात प्रेस अब मध्यस्त चुकी है, जिसमें पेड न्यूज का बोलबाला है! मीडिया में दलित, दमित, शोषित, वंचित, अल्पसंख्यक, पिछड़े और आदिवासियों का नगण्य प्रतिनिधित्व है! ऐसे में लोक कल्याणकारी राज्य व्यवस्था की स्थापना एक सपना बन कर रहा गया है! जनता के हक सरेआम कुचले जा रहे हैं!
अन्याय के गहरे और घने अंधकार के सामने इंसाफ का दीपक जलाने, इंसाफ की कमी को जनता के सामूहिक सहयोग से भरने के पवित्र इरादे से हम "हक रक्षक दल सामाजिक संगठन" के नाम से हाजिर हुए हैं! बावजूद इसके कि चतुर और चालाक मनुवादियों ने अनेक अनार्यों को मलाई खाने में सांकेतिक हिस्सेदारी देकर अपने साथ में बिठा रखा है, जिसके बदले में कुछ वर्गद्रोही अनार्य होकर भी, अनार्यों की जड़ काटने में लगे हुए हैं, फिर भी-उम्मीद पर दुनिया कायम है, देखते हैं कि हम क्या कर पाते हैं?
हम सभी अच्छे, सच्चे और स्वाभिमानी अनार्यों का आह्वान करते हैं-आइये वास्तविक आजादी और सामान भागीदारी की संवैधानिक जंग में आपकी हिस्सेदारी जरूरी है!
हमारे इरादे नेक और पूरी तरह से संविधान सम्मत हैं, फिर भी इस संगठन की स्थापना का मूल जानने से पूर्व हमारे इस आह्वान को जानना और समझना होगा कि मुठ्ठीभर मनुवादी आतताई इस देश के कर्मशील, ईमानदार और स्वाभिमानी लोगों को अकारण तंग नहीं करें, अन्यथा परिणाम सुखद नहीं होंगे! आर्यों को समझना होगा कि अब यदि उनके द्वारा अपने षड्यंत्रों और कुचक्रों बंद नहीं किया गया तो अनार्यों को अन्याय को ध्वस्त करने वाला इन्साफ का चक्र चलाने को विवश होना पड़ेगा!
अब आर्य मनुवादियों के हजारों सालों के विभेदकारी षड्यंत्रों को दफन करने का समय आ गया है, क्योंकि देशवासियों को समान भागीदारी, वास्तविक इंसाफ और हर क्षेत्र में सहभागिता के बिना देश में लोकतंत्र होने का कोई मतलब नहीं रह जाता है!
अभी तक मुठ्ठीभर आर्यों द्वारा दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़ों को आपस में लड़ाने के लिए जमकर साजिशें रची जाती रही हैं! साढ़े छ दशक बाद भी दलित और आदिवासियों को किसी भी क्षेत्र में उनकी जनसंख्या की तुलना में एक चौथाई प्रतिनिधित्व तक नहीं मिला है!
मानवता और समानता के वायदे करने वाले समाज में मेहतर जाति अभी भी मैला ढोने को विवश है! संडासों और सीवर लाइनों में कोई मनुवादी हिस्सेदारी नहीं माँगता है!
सरकारी सेवा में निचले पायदान पर कार्यरत लोक सेवकों (ग्रुप-डी) से उच्चपदस्थ अफसरों द्वारा अपने घरों पर गुलामों की भांति बेगार करवाई जाती है! जिससे आहत होकर अनेक लोक सेवक आत्महत्या तक करने को विवश हो रहे हैं!
सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक न्याय की प्राप्ति तथा भारत के संविधान में वर्णित समस्त मूल अधिकारों के क्रियान्वयन के साथ-साथ बराबरी की व्यवस्था कायम करने के लिए, देशभर में आम-ओ-ख़ास को शामिल करते हुए सतत जन जागरण अभियान चलाने और दलित, दमित, आदिवासी, वंचित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हितों की संवैधानिक तरीके से रक्षा करने तथा करवाने के लिए अब हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन एक नेशनल रजिस्टर्ड संगठन के रूप में स्थापित हो चुका है!
केवल इतना ही नहीं, बल्कि हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन का दिल्ली से राष्ट्रीय स्तर पर रिकार्ड समय में रजिस्ट्रेशन हुआ है। दिनांक : 27.02.2015 को इस संगठन की विधिवत स्थापना हुई, 13 मार्च, 2015 को रजिस्ट्रेशन हेतु आवेदन प्रस्तुत किया गया और 29 अप्रेल, 2015 को रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जारी हो गया।
हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन की संस्थापक राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल पदाधिकारियों के नाम और पदनाम इस प्रकार हैं :-
01. श्री डॉ. पुरुषोत्तम मीणा-राष्ट्रीय प्रमुख-जयपुर, राजस्थान
02. श्री शंकर सिंह दादूसिंह खोकड-राष्ट्रीय उप प्रमुख-अमरावती, महाराष्ट्र
03. श्री अमीनुद्दीन सिद्दीकी-राष्ट्रीय सहायक प्रमुख-दिल्ली
04. श्री रूपचन्द मीणा-राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष-सीकर, राजस्थान
05. श्री पवन मीणा-राष्ट्रीय उप कोषाध्यक्ष-कोटा, राजस्थान
06. श्री उम्मेद सिंह रेबारी-राष्ट्रीय सचिव-जयपुर, राजस्थान
07. श्री राजेंद्र तानाजी बागुल-राष्ट्रीय सचिव-नाशिक, महाराष्ट्र
08. श्री विनय सिंघल-राष्ट्रीय सचिव-कोटा, राजस्थान
09. श्री कांति लाल रोत-राष्ट्रीय सचिव-डूंगरपुर, राजस्थान
10. श्री मनोज कु. मीणा-राष्ट्रीय सचिव-भरतपुर, राजस्थान
11. श्री जयप्रकाश मीणा-राष्ट्रीय उप प्रवक्ता-दौसा, राजस्थान
12. श्री जगदीश बामनिया-राष्ट्रीय संगठन सचिव-नीमच, मध्य प्रदेश
13. श्री अशोक कु. मीणा-राष्ट्रीय संगठन सचिव-रायपुर, छत्तीसगढ़
14. श्री बदन सिंह मीणा-राष्ट्रीय कार्यालय सचिव-बड़ोदरा, गुजरात
15. श्री प्रदीप सिंह-राष्ट्रीय कार्यालय सचिव-मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
इस अवसर पर हमारे सभी निन्दकों, आलोचकों, समालोचकों, सहयोगियों, शुभचिंतकों, समर्थकों और आत्मीयजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संघठन,
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