लेखक : डॉ. पुरुषोत्त्म मीणा 'निरंकुश'
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने 'जय जवान—जय किसान!' का ओजस्वी नारा दिया था और किसान तथा जवान एकजुट होकर शास्त्री जी के साथ खड़े हो गये थे। इसी नारे को अपना समर्थन देते हुए भाजपा के प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने इसके पीछे जय विज्ञान जोड़ दिया था। लेकिन उन्होंने, उनकी सरकार ने या उनकी पार्टी की किसी भी सरकार ने किसानों के लिये किया कुछ नहीं। हां उनकी भाजपा की केन्द्र और राज्य सरकार के शासन में मध्य प्रदेश में गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक एक दर्जन किसानों की फौज के मार्फत हत्या अवश्य करवाई जा चुकी है। क्या यही जय जवान और जय किसान है। जिस भारत सरकार की फौज किसानों की हत्या कर रही है, उस सरकार को सरकार में बने रहने का कोई हक नहीं है।
फौज के हाथों मारे जा रहे किसान का अपराध क्या है?-किसान सिर्फ अपनी कृषि उपज का वाजिब मूल्य चाहते हैं। लेकिन सरकार उचित मूल्य किसी भी कीमत पर देना नहीं चाहती है। इसके विपरीत क्रूर पूंजीवाद की समर्थक भाजपा की भारत सरकार कृषि आय को भी आयकर के दायरे में लाने पर गम्भीरतापूर्वक चिन्तनशील है।
कृषि और किसानों की हालत में सुधार के लिये सरकार के पास बजट नहीं है, जबकि सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों को हर दस साल बाद वेतन आयोग की अनुशंसाओं के अनुसार वेतन में बढोतरी की जाती रहती है। उन्हें साल में दो बार महंगाई भत्ता दिया जाता है। सांसद और विधायक जब चाहें तब खुद के वेतन, भत्ते और सुख-सुविधाओं में बढोतरी कर लेते हैं। घाटे में चल रही निजी कम्पनियों, उद्योग घरानों और कॉर्पोरेट घरानों के कर्ज को माफ करने के लिये सरकार के पास पर्याप्त बजट है। सरकारी तंत्र को जरूरत के अनुसार हर प्रकार की सुख-सुविधा प्रदान करने में सरकारी बजट में कोई कमी नजर नहीं आती है। सरकार की साम्प्रदायिक नीति के प्रचारक बाबाओं की सुरक्षा के नाम पर करोड़ों रुपया खर्च करने के सरकार के पास धन है। सरकारी शोषक नीतियों का कुप्रचार करने के लिये और मीडिया को अपना पिठ्ठू बनाये रखने के लिये विज्ञान के नाम पर मीडिया को रिश्वत देने के लिये सरकार के पास हजारों करोड़ का बजट है। मगर दु:खद और शर्मनाक तथ्य कि कृषि संरक्षण और किसानों के आंसू पौंछने के लिये सरकार के पास धन नहीं है।
भारत के अन्नदाता किसान की बहुत छोटी सी और सौ फीसदी न्यायसंगत मांग है, (जिसे समस्या बताया जाता है) किसान को उसकी फसल का वाजिब मूल्य मिलना चाहिये। यह मांग मानना सरकार के लिये आसान नहीं है। या यह कहा जाये कि किसान को फसल का वाजिब मूल्य देना सरकार की चिन्ता ही नहीं है। इसका कारण बताया जाता है, बजट का अभाव और आम गरीब लोगों को सस्ता अनाज उपलब्ध करवाने की सरकारी नीति। जबकि गरीबों को सस्ती दर पर सरकार अनाज उपलब्ध करवा रही है।
इसके ठीक विपरीत किसान द्वारा उपयोग की जाने वाली कृषि तकनीक, बीज और कीटनाशकों की बेतहाशा तथा मनमानी मूल्य वृद्धि करने वाली कम्पनियों को बढावा देना और उनको अनियन्त्रित छोड़ना सरकार के लिये बहुत आसान काम है। साफ शब्दों में कहा जाये तो किसान का शोषण होते तथा करते रहना ही सरकार का अघोषित ऐजेंडा है। इस शोषण के खिलाफ उठने वाली असंगठित किसानों की आवाज को दबाने के लिये फौज के मार्फत किसानों की हत्या करवाई जा रही हैं और मृतकों को चुप कराने के लिये प्रति मृतक एक करोड़ मुआबजा घोषित किया जा रहा है। जिससे मृत परिवारों को चुप करवाया जा सके!
जिन्दा किसानों के लिये बजट नहीं, लेकिन मुआबजे के लिये बजट है! यह अपने आप में हास्यास्पद और शर्मनाक स्थिति है! इससे भी अधिक शर्मनाक उन ढोंगी तथा नकाबपोश राजनेताओं की चुप्पी है, जो अपनी काली कमाई के जरिये रैलियां और सभाओं का आयोजन करके किसान का बेटा मुख्यमंत्री बनाओं के नाम पर किसानों को गुमराह करने में तो सबसे आगे रहते हैं, लेकिन किसानों की सरकारी तंत्र द्वारा की जा रही निर्मम हत्याओं के समय किसी बिल में दुबके बैठे हुए हैं। सबसे पहले किसानों को ऐसे राजनेताओं को नंगा करना बहुत जरूरी है। बल्कि पहली जरूरत है। ऐसे राजनेता ही किसानों के असली दुश्मन हैं!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'-राष्ट्रीय प्रमुख
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