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मानवाधिकार दिवस और भारत के अनार्य पता नहीं, कौन किसके लिये चिन्तित है?

 

लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

 

 

सर्वदित है कि सारे संसार में औपचारिक रूप से 10 दिसंबर को हर वर्ष मानव अधिकार दिवस मनाया जाता है। वर्ष 1948 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर को इसके हर साल इसे मनाये जाने की घोषणा की थी। तब मावन अधिकारों की सार्वभौमिक संरक्षा के लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिवर्ष इसे मनाया जाता है।

विश्व की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा भारत में रहता है। भारत की कुल आबादी का 90 फीसदी (अनार्य) हिस्सा मानव अधिकारों से वंचित है। जिसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि देश के मात्र 10 फीसदी लोगों द्वारा 90 फीसदी लोगों की लोकतांत्रिक ताकत को संविधान की आड़ में गिरवी रख रखा है। भारतीय लोकतंत्र में कागजी तौर पर जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है, जबकि वास्तविकता यह है कि राजनैतिक दलों पर काबिज 10 फीसदी आर्य महामानवों द्वारा, जिन लोगों को नामित किया जाता है, उनके नाम पर ठप्पा लगाने का काम जनता करती है। इससे बड़ा मानव अधिकार हनन क्या होगा?

जिस देश की 90 फीसदी अनार्य आबादी को अपने प्रतिनिधि चुनने का हक नहीं और फिर भी उसी अनार्य आबादी द्वारा तकनीकी तौर पर चुने हुए प्रतिनिधयों के मतों से सत्ता पर काबिज आर्य हर दिन अनार्यों का शोषण और उत्पीड़न करते रहते हैं। अपनी सुख-सुविधाओं के लिये हर साल नये-नये कर लादते रहते हैं। वर्तमान में भारत की सत्ता पर काबिज सरकार तो दश में फिर से मनुवादी सत्ता लागू करने का उतवाली हो रही है। कोई आश्चर्य नहीं, यदि ऐसा सम्भव हो भी जाये? क्योंकि कथित रूप से निर्वाचित अनार्य जनप्रतिनिधि तो आर्यों के गुलामों से भी बदतर स्थिति में हैं। क्या न हालातों में भारत की 90 फीसदी आबादी को मानव अधिकार दिवस मनाने का को कोई कारण है? फिर भी आर्यों के सुर में सुर मिलाने के लिये मानव अधिकार दिवस मनाने का शौक है तो मनाईये आपको रोका किसने है?

आलेख समाप्त करने से पूर्व कुछ ऐसे उद्धरणों का संकलन जिनसे शायद पाठक कुछ सोचने को विवश हो जायें?
1."किसी एक के खिलाफ अन्याय प्रतिबद्ध हर किसी के लिए एक खतरा है।"
2." हम एक साथ होकर नर संहार को फिर से होने से रोक सकते है। एक साथ हम अपने बच्चों के लिए एक बेहतर भविष्य बना सकते हैं।"
3. "कोई फर्क नहीं पडता कि कितना करुणाजनक या दयनीय है, हर मानव को अपने जीवन में एक पल नसीब होता हैं जिसमें वे अपने भाग्य को बदल सकते हैं।"
4. "दूसरों को बढ़ावा देने के लिए अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करें।"
5. "आप मानवाधिकारों को अधिकृत नहीं कर सकते है।"
6. "आप एक इंसान हैं। वास्तविकता में आपको जन्मजात अधिकार प्राप्त है। आप कानून से पहले मौजूद गरिमा और श्रेय के लिए है।"
7. "याद रखें जो परिवर्तन आप दुनिया में और अपने स्कूल में देखना चाहते हैं, , वो आप से शुरू हो।"
8. "हम सिर्फ दो लोग हैं। ऐसा नहीं है कि हमें बहुत ज्यादा अलग करती है। जैसा मैनें सोचा था उससे ज्यादा, लगभग नहीं के बराबर।"
9. "आज मानव अधिकारों का उल्लंघन कल के संघर्षों का कारण हो सकते हैं।"
10. "हम विश्वास करते हैं कि मानव अधिकार सीमाओं के पार और राज्य की संप्रभुता से अधिक प्रबल होने चाहिए।"
11. "यदि कैदी पीटा जाता है, यह एक भय की अभिमानी अभिव्यक्ति है।"
12. "स्वास्थ्य एक मानवीय आवश्यकता है; स्वास्थ्य एक मानव अधिकार है।”
13. "नागरिकों को राज्य की संपत्ति बनाने के लिए संघर्ष करना हमारे लिए वास्तविक संघर्ष है।"
14. "ज्ञान एक आदमी को एक गुलाम होने के लिए अयोग्य बनाता है।"
15. "जब भी पुरुषों और महिलाओं को उनकी जाति, धर्म, या राजनीतिक विचारों की वजह से सताया जाता है, वह जगह-उस पल में-ब्रह्मांड का केंद्र बन जाना चाहिये।"
16 "सबसे बड़ी त्रासदी बुरे व्यक्तियों का अत्याचार और दमन नहीं बल्कि इस पर अच्छे लोगो का मौन रहना है।"
17. “हम में से बहुत से मानवाधिकारों और कलात्मक स्वतंत्रता की परवाह में रंगने के लिये प्रोत्साहित करते है।”
18. "लोगों को उनके मानव अधिकारों से वंचित करना उनके द्वारा मानवता को बहुत बडी चुनौती है।"
19. "एक व्यक्ति के अधिकार वहॉ समाप्त हो जाते है जब वे किसी अन्य व्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करते है।"
20. "युद्ध के समय में नियम शान्त होते हैं।"

अन्त में यह बात समझने की है कि भारत में आर्य आबादी 10 फीसदी है और अनार्य 90 फीसदी। 10 फीसदी आर्यों की अतिवादी, मनुवादी, अहंकारवादी, सामन्वादी और जन्मजातीय श्रेृष्ठतावादी सोच के कारण 90 फीसदी अनार्य हर दिन मानव अधिकारों से वंचित रहते हैं। उपयुक्त और सही इलाज, समान शिक्षा, स्वास्थ्य, शुद्ध पेयजल तक आर्यों को उपलब्ध नहीं है। उनकी किसी को परवाह नहीं है। यहां तक की खुद उन लोगों को भी परवाह नहीं, जिनके मानव अधिकारों का हनन होता रहता है। इसके विपरीत संसारभर में मानव अधिकारों के उच्च प्रतिमान स्थापित करने के लिये मानवाधिकार कार्यकर्ता, चिन्तक और लेखक लगातार काम कर रहे हैं। पता नहीं, कौन किसके लिये चिन्तित है?

 

 


@ डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

 

 

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