Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मोदी सरकार का वार! आम आदमी पर मार!

 

 

संविधान के अनुच्छेद : 21 का खुला हनन!!
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Dr. Purushottam Meena 'NirankusH'
-----एकादशी 11 नवम्बर, 16 को बेटी की शादी है। दान-दहेज की रकम बैंक में जमा है, लेकिन बेड़ा गर्क हो भाजपा और मोदी सरकार का मैं, मुँह दिखाने लायक नहीं बचा। मेरी जीवनभर की बचत को भी बैंक से नहीं निकाल सकता।
------पिताजी की दवाई और डॉक्टर की फीस पर ही हर रोज 7000 रुपये खर्च हो रहे हैं और मोदी कहते हैं-सप्ताह में 10 हजार से अधिक राशि नहीं निकाली जा सकती। यह तानाशाही नहीं तो और क्या है?
------मकान का भुगतान करने के लिए, जैसे-तैसे, जोड़-तोड़ कर 34 लाख की रकम जुटाई थी। 10 नवम्बर, 16 को रजिस्ट्री करवाकर भुगतान करना था और 9 नवम्बर को 34 हजार की रकम प्रचलन से बाहर हो गयी। पिताजी को तो इस सदमें में अटैक आ गया। क्या यही अच्छे दिन हैं?
------मैं बैंगलौर से 25 हजार की नगदी 500 के नोट के साथ भानजी की शादी में शामिल होने के लिए जयपुर आयी थी। बहन-बेटियों को लेने-देने और उपहार देने की बात तो दूर, अपने खर्चे और आॅटो तक के लिए जेब धेला नहीं। क्या करूं?
ऐसे हजारों-लाखों लोगों के अन्तहीन दर्द बीच सड़क पर अनवरत सुने जा सकते हैं। जिनका जवाब देने वाला कोई नहीं है। संघी प्रधानमंत्री चाहते हैं कि देश का आम आदमी बिना उफ किये इन सारे दर्दों को चुपचाप सहता रहे!
लेकिन, आखिर क्यों सहता रहे? जवाब भी जान लें, क्योंकि—
—जनता ने भारत सरकार नहीं, मोदी सरकार चुनी है!
—सरकार और प्रशासनिक निकम्मेपन के कारण देश में भ्रष्ट लोगों ने अकूत #काला_धन जमा कर रखा है। जिसे संवैधानिक कानून के जरिये बाहर निकालपाना मोदी सरकार की हिम्मत से बाहर का काम है।
—अत: काले धन के मालिकों को सबके सिखाने के बहाने #संविधान को ताक पर रखकर मोदी सरकार देश के 98 फीसदी लोगों के दैनिक जीवन को दाव पर लगा चुकी है। अर्थात—मोदी सरकार का वार! आम आदमी पर मार!

प्रधानमंत्री का यह मनमाना निर्णय अर्थात् करे कोई और भरे कोई!! भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों को प्रदत्त #मूल_अधिकार का हनन और खुला उल्लंघन है। केवल इतना ही नहीं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 13 के उप अनुच्छेद 2 के प्रावधानों के अनुसार मूल अधिकारों के विरुद्ध बनाया गया ऐसा कानून/विधि या जारी किया गया आदेश संविधान/कानून की नजर में #अवैध_और_शून्य है। जिसे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट में या अनुच्छेद 226 के तहत किसी भी हाई कोर्ट में याचिका दायर करके असंवैधानिक घोषित करवाया जा सकता है, लेकिन याचिका दायर करने के लिये वकील को फीस के रूप में भुगतान करने के लिये वांछित धनराशि भी तो आम आदमी की जेब में होनी चाहिये।
ऐसे में यही आशा की जा सकती है कि आमजन के हित में, जिसे जनहित कहा जाता है, व्यावसायिक वकीलों को ही खुलकर सामने आना होगा। या लोक कल्याणकारी राज्य की संरक्षा और संवैधानिक जिम्मेदारी के निर्वाह हेतु तत्काल न्यायपालिका को स्वयं संज्ञान लेना होगा। तरीका कोई भी इस मनमाने एवं असंवैधानिक सरकारी आदेश को जनहित में तत्काल रोकना/रुकवाया जाना बहुत जरूरी है।

अन्त में मोदी भक्तों की जानकारी के लिये यह स्पष्ट करना जरूरी है, कि काले धन को बाहर निकालने के लिये मोदी सरकार की ओर से उठाया गया कदम निश्चय ही ऐतिहासिक है, लेकिन इसे लागू करने का तरीका निहायती मूर्खतापूर्ण और अधिनायकवादी संघी सोच का परिचायक है! यह लोकतंत्र के लिये खतरे की घंटी है!
@सबसे बड़ा सवाल : इस बात की #न्यायिक_जांच होनी चाहिये, कि पिछले 2 माह के दौरान एक विचारधार/पार्टी विशेष से सम्बद्ध जिन लोगों ने अपनी मोटी रकम 100—100 के नोटों में परिवर्तित करवायी है, क्या यह मात्र संयोग है या संवैधानिक #गोपनीयता की #शपथ का #उल्लंघन?
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

 

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