सेवासुत डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
>>>>> भारत के #मूलवासी_आदिवासी और अनुसूचित जाति (की कुछ प्रभावशाली जातियों को छोड़कर) तथा ओबीसी के वर्तमान वंशजों के पूर्वज यूरेशियन मूल के सूर्यवंशी क्षत्रिय #आर्य_शूद्रों के वंशज नहीं थे। इसी प्रकार/कारण वर्तमान अजा, अजजा, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्गों के लोग न शूद्र हैं और न हीं दलित हैं, भारत के मूलवासी होने का तो सवाल ही नहीं उठता।
>>>>> इसके उपरान्त भी यूरेशियन मूल के सूर्यवंशी क्षत्रिय आर्य-शूद्रों के वर्तमान वंशज देश की 85 फीसदी आबादी को #शूद्र, #दलित और #मूलनिवासी शब्द थोपकर सत्ता की सीढी चढने का खेल खेलते रहते हैं। जिसमें मायावती, उदितराज, पासवान, अठावले पहले से जगजाहिर हैं, अब कुछ नये चेहरे सामने आने को छटपटा रहे हैं। जिन्हें अजा एवं अजजा के लोगों की समस्याएं नहीं बल्कि, केवल सांसद/विधायक की कुर्सी दिख रही है।
>>>>> आगे बढने से पहले यह जान लेना उपयुक्त होगा कि केन्द्र सरकार के अधीन #भारतीय_रेलवे में बहुत बड़ी संख्या में लोक सेवक कार्यरत हैं। जिनमें स्वाभाविक रूप से अजा एवं अजजा के लोगों की भी पर्याप्त संख्या है। अजा एवं अजजा के रेलवे कर्मचारियों के हितों के संरक्षण के नाम पर केवल अजा के कुछ कर्मचारियों द्वारा 'आॅल इण्डिया एससी एण्ड एसटी रेलवे एम्पलाईज एसोसिएशन' का गठन किया गया था।
>>>>> रेलवे में 15 फीसदी अजा एवं 7.5 फीसदी अजजा वर्गों के रेलकर्मी हैं। इनके अलावा प्रारम्भ से ही सफाईवाला रेलकर्मियों में केवल अजा के ही रेलकर्मी भर्ती होते रहे थे। इस कारण प्रारम्भ में अजा और अजजा के रेलकर्मियों की संख्या का अनुपात 3:1 का होता था।
>>>>> इस कारण अजा एवं अजजा की इस कथित ऐसोसिएशन के चुनावों में पहले दिन से ही अजा बनाम अजजा के दो धड़े कायम होते रहे हैं। जिसके चलते एसोसिएशन की स्थापना से लेकर आज तक इसके नीति—नियन्ता पदों अर्थात् राष्ट्रीय अध्यक्ष और राष्ट्रीय महासचिव के पद पर किसी अजजा/आदिवासी रेलकर्मी को अवसर नहीं मिलने दिया गया है।
>>>>> इस अन्यायपूर्ण स्थिति के होते हुए #सामाजिक_न्याय और बराबरी की बात करने वाले 'आॅल इण्डिया एससी एण्ड एसटी रेलवे एम्पलाईज एसोसिएशन' के #संविधान मेंं इस बात का कहीं कोई प्रावधान नहीं किया गया कि इसमें अजजा के रेलकर्मियों को पर्याप्त #प्रतिनिधित्व कैसे प्रदान किया जायेगा? जिसके चलते अजजा के रेलकर्मी इस एसोसिएशन में #दोयम_दर्जे के पायदान पर रहे हैं।
>>>>> केवल इतना ही नहीं, बल्कि एसोसिएशन के शिखर पर अजा की एक जाति विशेष का प्रारम्भ से कब्जा रहने के कारण संख्याबल की दृष्टि से अजा वर्ग की छोटी जातियों के रेलकर्मियों के संरक्षण और उत्थान के लिये भी कभी कुछ नहीं किया जाता है। इसी का दुष्परिणाम है कि रेलवे से सफाईवाला पद पर काम करने वाले #मेहतर जाति के लाखों रेलकर्मियों के पदों की समाप्ति के वक्त एसोसिएशन #नेतृत्व_मौन रहा और रेलवे में सफाई का कार्य ठेके पर चला गया। #ठेकेप्रथा में मलाई तो पूंजीपति खा रहे हैं और #न्यूनतम_मजदूरी की दर से भी कम पर मेहतर जाति के लोग सफाई करने को विवश हैं।
>>>>> वर्तमान में भी इस एसोसिएशन पर एक #जाति_विशेष के ऐसे दो लोगों का दशकों से कब्जा है, जिनको अजा की शेष जातियों की तथा अजजा के रेलकर्मियों की समस्याओं के प्रति कोई सारोकार/संवेदनशीलता नहीं है। हां अजजा वर्ग के कुछ #विभीषण इन्होंने अवश्य पाल रखे हैं। जो इनकी हां में हां मिलाते रहते हैं। इसी का यह दुष्परिणाम है कि भारतीय रेलवे के तकरीबन सभी जोंस में अजा एवं अजजा के रेलकर्मी हर दिन #शोषण, #अत्याचार, #भेदभाव और #अन्याय के शिकार हो रहे हैं।
>>>>> सबसे महत्वूपर्ण बात इस एसोसिएशन के वर्तमान शिखर/राष्ट्रीय नेतृत्व ने एसोसिएशन के संविधान में संशोधन के जरिये प्रत्यक्ष चुनावी लोकतंत्र को खतम करके परोक्ष चुनावों के जरिये कुछ गिनेचुने और हां में हां मिलाने वाले अजजा के कुछ स्वार्थी और पदलोलुप रेलकर्मी प्रतिनिधियों के जरिये हमेशा के लिये अजा की एक जाति विशेष के लोगों ने कभी न खतम होने वाला कब्जा जमा लिया है।
>>>>> विचारणीय और चिन्ता का विषय है कि जो नेतृत्व सभी जातियों/वर्गों को एसोसिएशन मेंं समान/अनुपातिक या न्यायसंगत #भागीदारी नहीं दे सकता, उसे रेलवे में सरकारी पदों पर संवैधानिक #समानता, #पदोन्नति में #आरक्षण जैसे मुद्दों पर केन्द्र सरकार से वार्ता करने का कोई नैतिक हक होना चाहिये? यही नहीं एसोसिएशन का नेतृत्व आदिवासी अस्तित्व को समाप्त करने के #आर्य_सवर्णों और #संघ_मिशन (आदिवासी मिटाओ) के लिये भी औपचारिक तौर पर काम कर रहा है।
>>>>> इसी का प्रत्यक्ष प्रमाण है—21 नवम्बर, 2016 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर होने जा रही कथित महारैली का शिखर नेतृत्व केवल अजा के लोग कर रहे हैं, परिणामत:—
1. महारैली को अजजा एवं अजजा की महारैली नाम नहीं दिया गया है।
2. महारैली को दलित-आदिवासी की महारैली नाम भी नहीं दिया गया है।
3. इसके ठीक विपरीत आदिवासी अस्तित्व को नेस्तनाबूद करने और बाबा साहब के विचारों के विपरीत महारैली को #राष्ट्रीय_दलित_पंचायत नाम देकर राष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर से आदिवासी के मौलिक अस्तित्व को नकारने का #षड़यंत्र किया जा रहा है।
4. 'राष्ट्रीय दलित पंचायत' नामकरण के विरुद्ध ऐसोसिएशन के पदों पर पदस्थ अजजा के कथित रेलकर्मी प्रतिनिधियों की चुप्पी या सहमति एसोसिएशन के उच्च नेतृत्व के प्रति उनके स्वामिभक्त/दब्बू/लुंजपुंज/पदलोलुप/पोरुषहीन होने का प्रमाण है, तो भारत के आदिवासी के लिये शर्मनाक है!
>>>>>>>>>'राष्ट्रीय दलित पंचायत' का असल मकसद क्या??????
>>>>> राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाकर रेलवे से सेवानिवृति के बाद या आने वाले चुनावों में उदितराज की तरह दलित-आदिवासी मतों के सौदागर बनकर संघ की कृपा से सांसदी/विधायकी हासिल करना। इसके बाद भी इस कथित 'राष्ट्रीय दलित पंचायत' को धन और समर्थन देने में जुटे लोगों की आंखें नहीं खुलती हैं तो 2018 और 2019 का इन्तजार किया जा सकता है!
>>>>> 'मीठा झूठ' बोलने से अच्छा है-'कड़वा सच' बोला जाए, इससे आपको 'सच्चे दुश्मन' जरूर मिलेंगे, लेकिन 'झूठे दोस्त' नहीं!
आखिर कब तक सिसकते रहोगे?
बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे??
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