लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
26 जनवरी, 2016 को हम गण्तंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं। गण्तंत्र को समझने से पहले हमें आजादी को समझना जरूरी है। 'स्वतंत्रता दिवस' जिसे हमें 'भारत की आजादी' बताया और पढ़ाया जाता रहा है। करोड़ों रुपया खर्च करके जिसका हर साल हम जश्न मनाते रहे हैं। दरअसल यह आजादी है ही नहीं। अर्थात् 15 अगस्त, 1947 को घटित आजादी की घटना एक ऐसी घटना थी, जो भारत के इतिहास में पहले भी अनेकों बार घटित होती रही। अर्थात् भारत की प्रजा, विभिन्न राजाओं और बादशाहों की गुलाम रहते हुए एक शासक से आजाद होकर दूसरे शासक की गुलाम बनती रही। शासक अर्थात् राजा और बादशाह बदलते रहते थे, लेकिन प्रजा गुलाम की गुलाम ही बनी रहती थी।
15 अगस्त, 1947 को भी इससे अधिक कुछ नहीं हुआ था। भारत की सत्ता गोरे अंग्रेजों से काले अंग्रेजों को स्थानान्तरित कर दी गयी गयी। आम लोग 15 अगस्त, 1947 से पहले जैसे थे, वे वैसे के वैसे ही रहे। उनकी स्थिति और जीवन में कोई मौलिक या प्रत्यक्ष बदलाव नहीं आया। यद्यपित भारत के आदिवासी कबीलों में गण और गणतंत्रात्मक शासन व्यवस्था का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। फिर भी भारत के इतिहास में 26 जनवरी, 1950 के दिन बड़ी घटना घटी। सम्पूर्ण भारत पहली बार, एक दिन में, एकसाथ गणतन्त्र बना। यह भारत के इतिहास में अनौखी और सबसे बड़ी घटना मानी जा सकती है। हालांकि अनेक विधि-विशेषज्ञ संविधान सभा के गठन की उसकी वैधानिकता और उसकी प्राधिकारिता पर लगातार सवाल खड़े करते रहे हैं।
भारत के गणतंत्र बनते ही भारत के इतिहास में पहली बार समपूर्ण भारतीय जनता को विचार, मत और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और आजादी के उपयोग की उम्मीद की जगी। मगर बहुत कम समय में सब कुछ निरर्थक सिद्ध हो गया। संविधान को धता बताकर बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Va-वैश्य+Sसंघी) वर्ग के शोषक मनुवादी, काले अंग्रेज और पूँजीपति मिल गए और भारत की सम्पूर्ण व्यवस्था को अपने शिकंजे में ले लिया।
1925 में जन्मा और गांधी के हत्यारे का मानसपिता (वैचारिक जन्मदाता) राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) यकायक जवान हो गया। जिसका मूल मकसद सम्पूर्ण संवैधानिक व्यवस्था पर वकवास वर्ग के आर्यश्रेृष्ठ ब्राह्मणों का वर्चस्व स्थापित बनाये रखना था। संघ ने देशहित, राष्ट्रहित, जनहित, समाजहित जैसे आदर्शवादी जुमलों को लोगों की संवेदनशील भावनाओं की चाशनी में लपेटकर सारी बातों को राष्ट्रभक्ति और हिन्दू धर्म से जोड़ दिया। साथ ही भारत की संवैधानिक व्यवस्था पर कब्जा करके, समाज में अमानवीय मनुवादी मानसिकता के नये बीज बोना शुरू कर दिया।
केवल इतना ही नहीं संघ की कथित राष्ट्रभक्ति और हिन्दू धर्म से ओतप्रोत कट्टर विचारधारा ने हिन्दू और मुसलमान को आमने-सामने खड़ा करने की नींव रख दी। संघ द्वारा देश को हिन्दू-मुस्लिम में बांटने का अक्षम्य अपराध भी लगातार किया जाता रहा। जिसके चलते भारत का मुसलमान अपने देश में भी खुद को असुरक्षित अनुभव करने लगा। मुसलमान से देशभक्ति के सबूत मांगे जाने लगे। यह सिलसिला आज तक जारी है। मुसलमान को आतंक के पर्याय के रूप में प्रचारित किया जाने लगा। जबकि सारा संसार जानता है कि 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत में पहली अमानवीय आतंकी घटना का जिम्मेदार कोई मुसलमान नहीं, बल्कि संघ का सदस्य रहा-'नाथूराम गोडसे' था। इतिहास गवाह है कि मोहनदास कर्मचंद गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांघी तीनों की हत्याओं से मुसलमानों का कोई सरोकार नहीं रहा।
इस्लामिक आतंक का दुष्प्रचार करने वाले यहूदी, ईसाई और आर्यों को इस बात का जवाब देना चाहिये कि संसार में पहला बम किसने बनाया? क्या पहला अणु या परमाणु बम बनाने वाला कोई मुसलमान था? पहला बम जापान पर अमेरिका ने गिराया, क्या मुसलमान का इससे कोई वास्ता था? सर्वाधिक विचारणीय तथ्य यह है कि आतंक और मानवविनाश के हथियारों के निर्माण की शुरूआत किसने की? मुसलमान को आतंक का पर्याय बनाने के पीछे वही शातिर मानसिकता है जो आदिवासी को नक्सलवादी बनाने के पीछे संचालित है। कार्पोरेट घरानों का प्राकृतिक संसाधनों पर बलात् कब्जा करवाने के लिये आदिवासियों को नक्सलवादी बना कर उनको, उनकी प्राकृतिक सम्पदा जल, जमीन और जंगलों से खदेड़ कर, उन्हें उनके पूर्वजों की भूमि, कुलदेवों, कुलदेवियों, अराध्यदेवों से बेदखल कर दिया गया। जिसके चलते प्रकृति प्रेमी आदिवासी बन्दूक उठाने का विवश हो गया। इसी प्रकार से खाड़ी देशों के तेल कुओं पर कब्जा करने के लिये पश्चिमी देशों की ओर से इस्लामिक आतंक का झूठ प्रचारित किया गया, जो अब एके-47 और एके-56 के साथ हमारे सामने पैशाचिक रूप में खड़ा हो चुका है।
कड़वा सच तो यह है कि बेशक भारत आज सैद्धांतिक रूप से आजाद और लोकतांत्रिक गणराज्य है, जो संसार के सबसे बड़े संविधान से संचालित है। मगर असल में यहां का आम व्यक्ति वकवास—वर्गी विदेशी आर्य-ब्राह्मण का गुलाम ही बना हुआ है। आज भी भारत की 90 फीसदी वंचित (MOST=Minority+OBC+SC+Tribals) आबादी के मौलिक हक 10 फीसदी बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Va-वैश्य+S-संघी) वर्ग ने बलात् बंधक बना रखे हैं। राजनैतिक दलों पर बकवास वर्ग का प्रत्यक्ष और परोक्ष कब्जा है। जिसके चलते विधायिका और कार्यपालिका इनके इशारे पर चलती है। न्यायपालिका और प्रेसपालिका (मीडिया) पर बकवास वर्ग का एकाधिकार है। प्रशासन के निर्णायक और नीति-नियन्ता पदों पर बकवास वर्ग का एकछत्र कब्जा है। 90 फीसदी वंचित (MOST=Minority+OBC+SC+Tribals) आबादी की मुश्किल से 10 फीसदी हिस्सेदारी है, जबकि 10 फीसदी बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Va-वैश्य+S-संघी) वर्ग का 90 फीसदी से अधिक संसाधनों, सत्ता और प्रशासन पर कब्जा है। इससे भी दुःखद तथ्य यह कि 10 फीसदी के हिस्सेदार 90 फीसदी वंचित मोस्ट वर्ग, शोषक बकवास वर्ग को बेदखल करने के बजाय बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Va-वैश्य+S-संघी) वर्ग की अंधभक्ति करने और उनकी गुलामी करने में गौरव का अनुभव करते हैं या फिर आपस में लड़कर एक-दूसरे को नेस्तनाबूद करने में लिप्त देखे जा सकते हैं।
वंचित मोस्ट वर्ग में शामिल अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की संख्याबल की दृष्टि से ताकतवर जातियां जैसे-जाट, यादव, गूजर, कुर्मी आदि अपने आप को राजनैतिक रूप से ताकतवर समझने की गलतफहमी की शिकार हैं। परिणामस्वरूप ओबीसी जो देश की आधी से अधिक आबादी है, उसे संवैधानिक संरक्षण तथा विधायिका और प्रशासन में उचित प्रतिनिधित्व तक प्राप्त नहीं है। शोषक बकवास वर्ग ने षड्यंत्र पूर्वक न्यायपालिका के सहयोग से समस्त ओबीसी को मात्र 27 फीसदी आरक्षण में समेटकर पंगु बना दिया है। यही नहीं ओबीसी में शामिल जातियों के सामाजिक, शैक्षिणिक और आर्थिक स्तर में अत्यधिक विसंगतियाँ है। फिर भी इनको दुराशयपूर्वक एक ही वर्ग में शामिल किया गया है। जो संविधान के अनुच्छेद 14 के समानता स्थापित करने के लिये जरूरी वर्गीकरण के सिद्धान्त का सराकर उल्लंघन है। इस कारण ओबीसी जातियां आपस में लड़ने-झगड़ने में अपनी ऊर्जा और संसाधन व्यर्थ कर रही हैं। इसी का परिणाम है कि वंचित वर्ग की जाट जाति को एक झटके में ओबीसी से बाहर किया जा चुका है। भविष्य में अन्य किसी भी सशक्त दिखने वाली और बकवास वर्ग को चुनौती देने वाली किसी भी जाति को, कभी भी ओबीसी से बाहर किया जा सकता है!
अफ्रीका मूल की (जबकि डॉ. अम्बेडकर के मतानुसार आर्य) बताई जाने वाली और बकवासवर्गीय लोगों द्वारा निर्मित हालातों के कारण अस्पृश्य तथा अछूत बना दी गयी, अनेक दलित जातियों को गणतांत्रित व्यवस्था में केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। विशेषकर मेहतर जाति की बदतर स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। सुधारात्मक हालातों ने उनको मेहतर और भँगी से वाल्मीकि बेशक बना दिया हो, लेकिन आज भी सबसे हीनतर, घृणित, अभावमय और अमानवीय जीवन उनकी नियति बना हुआ है। उनके उत्थान और मुक्ति के लिए सरकार और दलित नेतृत्व ने कोई पुख्ता संवैधानिक योजना बनाकर लागू करना तो दूर, विचारार्थ प्रस्तुत तक नहीं की, न ही इस बारे में बिना पूर्वाग्रह के मंथन किया जाता है। अनुसूचित जाति वर्ग में मेहतरों को शामिल करके बेशक उनको संवैधानिक आरक्षण जरूर प्रदान कर दिया गया है, लेकिन यह भी उनके साथ धोखा ही सिद्ध हुआ है। अजा वर्ग में मेहतर जाति उसी तरह से उपेक्षित है, जैसे अजजा और ओबीसी में अनेक दुर्बल और अति पिछड़ी जातियां एवं जनजातियां लगातार उपेक्षा की शिकार होती रही हैं।
आदिवासी जो इस देश का वास्तविक आदिनिवासी है तथा भारत का असली स्वामी/मालिक है, उसे गणतंत्र भारत में इंसान तक नहीं समझा जाता है। आदिवासी मूलभूत जीवनरक्षक जरूरतों तक से महरूम है। जिसके लिये आदिवासियों के जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक प्रतिनिधि भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। दूसरी ओर भारत की सेना द्वारा आदिवासियों को आतंकी सदृश्य नक्सली घोषित करके बेरोकटोक मारा जा रहा है। आदिवासी की मूल आदिवासी पहचान को समाप्त करने का सुनियोजित षड्यंत्र लगातार जारी है। मनुवादी मानसिकता के बकवासवर्गीय संविधान निर्माताओं ने आदिवासी को, आदिवासी से जनजाति बना दिया। संघ ने आदिवासी को वनवासी, गिरवासी और जंगली बना दिया। अब आर्य-शूद्रों (डॉ. अम्बेडकर के मतानुसार शूद्र आर्यवंशी हैं) के नेतृत्व में संचालित बामसेफ आदिवासी को मूलनिवासी जैसा बेतुका तमगा थमाना चाहता है और खुद को भारत का 'मूलनिवासी' घोषित करके भारत पर शासन करने का सपना देख रहे हैं।
जबकि भारत की नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली मनुवादी सरकार आदिवासी शब्द को ही प्रतिबंधित और निसिद्ध घोषित करके जनजातियों की सूची में गैर-आदिवासियों को शामिल करने की षड्यंत्रपूर्ण योजना पर काम कर रही है। जिस पर मूलनिवासी, वनवासी, गिरवासी आदि की एकता का राग अलापने वाले आदिवासियों के कथित शुभचिन्तक, आदिवासी जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक प्रतिनिधि और मीडिया आश्चर्यजनक रूप से मौन धारण किये हुए हैं! आखिर क्यों? इस सवाल के जवाब में ही ही साजिश के मूल-सूत्र निहित हैं।
इन सब दुश्चक्रों और षड़यंत्रों के कारण 10 फीसदी बकवासवर्गीय मनुवादी लगातार ताकतवर होता जा रहा है। कट्टरपंथी और मनुवादी आतंक के समर्थक संघ का सीधे-सीधे भारत की सत्ता पर कब्जा हो चुका है। हम वंचितवर्गीय 90 फीसदी होकर भी बकवासवर्गीय शोषके लोगों से मुक्ति के लिए कुछ भी सार्थक नहीं कर रहे हैं। राम, रहीम, कृष्ण, विष्णू, महादेव, हनुमान, दुर्गा, भैंरूं, वाल्मीकि, बुद्ध, कबीर, रविदास, फ़ूले, गांधी, आंबेडकर, बिरसा, जयपाल मुंडा, एकलव्य, कृष्ण आदि को अपना तारणहार मानकर, अपने-अपने भगवानों और महापुरुषों के ज्ञान और विचारों को सर्वश्रेष्ठ मानकर दूसरों पर थोपने में मशगूल हैं। हम सब संवैधानिक बराबरी और अपने हकों की ढपली तो खूब बजाते हैं, लेकिन वास्तव में कोई भी किसी को हिस्सेदार नहीं बनाना चाहता। सत्य को मानना तो दूर कोई सुनना और पढ़ना तक नहीं चाहता।
जब तक किसी बात को जाना नहीं जाएगा, मानने का सवाल ही नहीं उठता। अधिकारों की बात सभी करते हैं, लेकिन कर्त्तव्यों का निर्वाह कोई नहीं करना चाहता। संविधान और संविधान निर्माता का गुणगान तो हम खूब करते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों द्वारा संविधान को खरीदा जाता है। खरीद भी लिया तो पढा नहीं जाता। पढ लिया तो समझा नहीं जाता और समझ में भी आ गया तो अमल में नहीं लाना चाहते। जबकि इसके विपरीत हम वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, कुरआन, बाईबल, गीता खरीदने और पढ़ने में ही नहीं, बल्कि इनको कंठस्थ करने में गौरव तथा गरिमा का अनुभव करते हैं। आखिर-धर्म के ठेकेदारों ने हमारे दिलोदिमांग में स्वर्ग का प्रलोभन और नर्क का भय जो बिठा रखा है। बेशक आध्यात्मिक लोगों के जीवन में धर्म महत्वपूर्ण है, लेकिन भौतिक जीवन कानून और संविधान से संचालित होता है। अत: जिस दिन हमारे बच्चों के मनोमस्तिष्क में देश का संविधान होगा और लोकतंत्र की ताकत संख्याबल का अहसास होगा, उस दिन धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, गौत्र आदि के विभेद और मनुवादियों के शोषण से मुक्ति की स्थायी शुरूआत हो जायेगी और भारत में सच्चे अर्थों में गणतंत्र लागू हो जायेगा। क्या इसके लिये तैयार हैं? यदि हां तो विलम्ब किस बात का, बेशक 66 साल बाद ही सही, भारत की 90 फीसदी वंचित (MOST=Minority+OBC+SC+Tribals) आबादी के लोग 26 जनवरी, 2016 को भारत का संविधान खरीदकर गणतंत्र मनाने की शुरूआत करे!
जय भारत। जय संविधान।
नर-नारी सब एक समान।।
@—लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY