मैं सीता हूँ...
परित्यक्ता हूँ...
वन-वन भटकती
वैदेही हूँ...
तलाश उस आश्रम की
जहाँ कोई वाल्मीकि हो
और एक रामायण लिखे
ऐसा कोई गुरूदेव हो
जिसमें सीता
न आत्महत्या करेगी
न धरती की गोद में समायेगी
बल्कि, आसूँओं के घूँट पीकर
राम के राज को मिटायेगी
नारी राज स्थापित करेगी।
डॉ.राजश्री मोकाशी
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