“निराला का “पंचवटी प्रसंग”
निराला द्वारा लिखित ‘पंचवटी प्रसंग’ नामक एक लंबी कविता है, जिसे हिंदी का पहला काव्य-नाटक भी कहा जाता है, जो विषय वस्तु एवं शिल्प की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इसमें शूर्पनखा के कान-नाक काटने की कथा को विस्तारपूर्वक अंकित किया है। इस प्रसंग में इतना आकर्षण है कि किसी भी कवि के मन में इस पर स्वतंत्र काव्य लिखने की बात आ सकती है। जैसे बनवास में राम, लक्ष्मण और सीता कैसे रहते थे, उनके दिन कैसे बीतते थे, उनमें क्या-क्या बातें होती थी, क्या-क्या विशेष घटनाएँ घटती थी, इनके बारे में कोई भी भावुक हृदय सोच सकता है। इसी प्रसंग को आधार बनाकर निराला जी ने अपने काव्य की रचना की है। इस प्रसंग को पारंपरिकता में ग्रहण करते हुए भी नवीन रूप दिया है। परंपरागत कथा को बिल्कुल नयी शैली में प्रस्तुत किया है। निराला तुलसीदास से अत्यंत प्रभावित थे, तुलसी के ‘रामचरितमानस’ के एक लघु प्रसंग को कथात्मक विस्तार देकर, इस प्रसंग को निरालाजी ने पाँच दृश्यों में प्रस्तुत किया है। इससे कथा संविधान में कवि कितना सफल है यह स्पष्ट हो जाता है।
प्रथम दृश्य में राम और सीता बातें करते दिखाई देते हैं। किसी दिन पुष्पवाटिका में पुष्पराज खिले थे और राम लक्ष्मण के साथ वहाँ पर घूम रहे थे, उस दिन को याद करती हुई सीता आज के वन-जीवन को ही अधिक पसंद करते हुए कहती है-
“मैं तो सोचती हूँ वहाँ बंदिनी थी
और यहाँ खेलती हूँ मुक्त खेल
साथ हो तुम
और कहाँ इतना सुअवसर मुझे मिल सकता?
और कहाँ पास बैठ देखती मैं
चंचल तरंगिनी की तरल तरंगों पर
सुर ललनाओं के चारू चरण चपले नृत्यङ्ग”
इस प्रकार चौदह वर्ष के बनोवास के दर्मियान, पंचवटी नामक स्थल पर आश्रित, राम-सीता के मध्य जो वार्तालाप होता है उसको निरालाजी ने सामान्यता के धरातल पर प्रस्तुत किया है। इस तरह राम और सीता का गंभीर और मनोरम वार्तालाप चलता है उसी समय लक्ष्मण पूजा के लिए फल-फूल लेकर आते हैं। लक्ष्मण का नाटकीय प्रवेश करवाके तथा उनके अल्प भाषण से लक्ष्मण का विनय और शील स्पष्ट किया है। कवि ने लक्ष्मण के प्रस्थानोपरांत सीता उनके बारे में कहती हैं-
“कितना सुबोध है
आज्ञापालन के सिवा और कुछ नहीं जानता
आता है सामने तो झुका सिर
दृष्टि चरणों की ओर रखता है
कहता है बालक अब क्या है आदेश माता।”
सीता द्वारा लक्ष्मण के संबंधी एेसे भाव प्रकट करा के कवि ने दोनों के शील की विशेषता को रूपायित किया है। इससे प्रस्तुत रचना में विषय की विविधता, रोचकता और स्वाभाविकता का समावेश हुआ है। सीता के मुख से लक्ष्मण की प्रशंसा सुनकर राम भी उल्लसित होकर कहते हैं-
“पाये हैं गुण इसने सारे मां सुमित्रा के
वैसा ही सेवाभाव, वैसा ही आत्मत्याग
वैसी ही सरलता, वैसी पवित्र कांति
त्रुटि पर ज्यों बिजली-सी टूटती सुमित्रा मां
शत्रु पर त्यों सिंह-सा झपटता है लखन लाल।”
इस प्रकार राम और सीता के मुख से लक्ष्मण के चारित्रिक गुणों की प्रशंसा, निराला से पहले किसी भी कवि ने नहीं की है।
द्वितीय दृश्य में लक्ष्मण का स्वगत चिंतन व्यक्त हुआ है। यहाँ लक्ष्मण सेवापरायण, वीर तथा शक्तिसाधक के रूप में चित्रित है। कवि ने लक्ष्मण का राम-भक्त एवं सीता-भक्त रूप चित्रित किया है। लक्ष्मण सीता को माता का स्थान देते हुए कहते हैं-
“माँ की प्रीति के लिये ही चुनता हूँ सुमनदल
इसके सिवा कुछ भी नहीं जानता
जानने की इच्छा भी नहीं है कुछ
माता की चरण रेणु मेरी परम शक्ति है
माता की तृप्ति मेरे लिए अष्टसिद्धियाँ
माता के स्नेह-शब्द मेरे लिए सुख साधन हैं।”
यहाँ पर निराला की भक्ति भावना पर बंगाल की मातृशक्ति साधना का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। अन्य कवियों ने लक्ष्मण को एक अनन्य रामभक्त और सेवक के रूप में चित्रित किया है। किंतू निराला के ‘पंचवटी प्रसंग’ में लक्ष्मण का भक्त रूप भी सामने आता है। वे सेवा को जीवन का एकमात्र सहारा मानते हैं और भक्ति के लिए अपना सबकुछ समर्पित करने को तत्पर रहते हैं-
“मुक्ति नहीं चाहता मैं, भक्ति रहे काफी है
सुधाकर की कला में अंशु यदि बन कर रहूँ
तो अधिक आनंद है।”
इस प्रकार कवि ने अद्वैतवादी दर्शन का प्रतिपादन किया है। यह दृश्य लक्ष्मण के स्वगत चिंतन से हीं समाप्त होता है। उसी तरह तीसरा दृश्य शूर्पनखा के स्वगत कथन से प्रारंभ होता है।
यहाँ शूर्पनखा समस्त कोमलता के साथ रंगमंच पर अवतरित होती है। कवि ने शूर्पनखा को तमोगुण प्रधान रूपगर्विता नायिका के रूप में चित्रित किया है। वह अपने को रमा और रंभा से भी अधिक सुंदर मानती है। वह कहती है-
“सृष्टि भर की सुंदर प्रकृति का सौंदर्य मात्र
खींच कर विधाता ने भरा है इस अंग में
प्यार से”
“रानी हूँ, प्रकृति मेरी अनुचरी है
प्रकृति की सारी सौंदर्यराशि लज्जा से
सिर झुका लेती जब देखती है मेरा रूप
वायु के झकोरे से वन की लताएँ सब
झुक जाती, नजर बचाती हैं
अंचल से मानो छिपाती मुख
देख यह अनुपम स्वरूप मेरा”
इस प्रकार शूर्पनखा हिंदी साहित्य में पहली बार एक सुंदर युवती के रूप में चित्रित हुई है। रामचरितमानस में तो वह पूर्णत: राक्षसी है। मैथिलीशरण गुप्त जी ने अपने ‘पंचवटी’ नामक काव्य में शूर्पनखा को सुंदरी के रूप में चित्रित अवश्य किया है, लेकिन वह उसका दिखावटी या माया रूप है जो लक्ष्मण को रीझाने हेतु धारण करती है। लेकिन निराला ने शूर्पनखा को पूर्णत: नारी रूप में चित्रित किया है। राम और लक्ष्मण को देखने से पूर्व ही उसके रूप में आकर्षण और मादकता दिखायी है। राम या लक्ष्मण को देखकर मायाविनी रूप बनाया हो एेसी बात यहाँ नहीं है। वह तो अपने एकांत में सजसँवर कर स्वयं को देखकर प्रसन्न हो रही है।
चतुर्थ दृश्य में राम, लक्ष्मण और सीता के संवाद है। लक्ष्मण राम से पूछते हैं- प्रलय क्या है? राम कहते हैं- मन, बुद्धि और अहंकार का लय ही प्रलय है। फिर लक्ष्मण की जिज्ञासा तीव्र होती है और वे अधिक जानने के लिए पूछते हैं कि प्रलय कैसे होता है? सृष्टि निर्माण का रहस्य क्या है? ये सारी जिज्ञासाएँ सीता की भी होती हैं। राम द्वारा इसका समाधान हो जाने पर वह पूछती है कि भक्ति का क्या रहस्य है? राम भक्ति के स्वरूप और स्वभाव को समझाते हुए भक्ति, ज्ञान और योग को एक बताते हैं और भ्रम के पार जाने की बात करते हैं। इस प्रकार राम, लक्ष्मण और सीता सबसे पहली बार नये रूप में- तत्वचिंतक के रूप में अवतरित हुए हैं। दूसरे कवियों ने राम, सीता और लक्ष्मण को केवल मृगया या कंद-मूल, फल-फूल आदि की खोज में व्यस्त चित्रित किया है। यहां तक मैथिलीशरण गुप्त जी ने ‘साकेत’ में सीता की दिनचर्या अंकित करते हुए, कछौटा बाँधकर फूल-पौधे उगाते, पानी पटाते और पौधों की थाली में उगे घास-पात को निहारते चित्रित किया है। लेकिन, निराला जी ने राम, लक्ष्मण और सीता के स्वरूप पर ध्यान देते हुए राम को केवल धनुर्धर और राजकुमार के रूप में ही नहीं, अद्वितीय तत्वदर्शी के रूप में और वन में उनके साथ सीता और लक्ष्मण को तत्वचिंतन में लीन दिखाया है। इस खंड में निराला जी ने अपने दार्शनिक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है।
अंतीम पाँचवे दृश्य में शूर्पनखा का प्रवेश स्वगत कथन से होता है। वह राम, लक्ष्मण और सीता को देखकर कहती है-
(स्वगत) “यहाँ तो ये तीन हैं
एक से हैं एक सुंदर
साथ एक नारी भी
सुंदर सुकुमारी है।”
वह राम के स्वरूप से मोहित होकर राम के पास जाती है और प्रणय-निवेदन करती है। राम कहते हैं- “सुंदरी मैं विवाहिता हूँ, देखो यह पत्नी है।” फिर लक्ष्मण की ओर इशारा करके- “जाओ तुम उनके पास, वे हैं कुमार और सुंदर भी” कहते हैं। लक्ष्मण राम की बात का तत्काल उत्तर देते हुए कहते हैं- “सुंदरी मैं उनका दास हूँ। वे महाराज कोशलपति हैं। चाहें तो एक क्या अनेक ब्याह कर सकते हैं।” राम उसका स्वीकार नहीं कर रहे यह देख अंत में वह कहती है-
“दगा दिया तूने ज्यों
त्यों ही फल भोगेगा इसका तू शीघ्र ही
दम में दम जबतक है
तुझे भी रूलाऊँगी
जैसा ही रूलाया मुझे।”
शूर्पनखा के एेसे उद्धत वचन को सुन लक्ष्मण क्रुद्ध होते हैं और उसके कान-नाक काट देते हैं। इस तरह प्रस्तुत रचना समाप्त हो जाती है।
निराला जी ने इस रचना के माध्यम से अपने दार्शनिक सिद्धांतों को व्यक्त किया है। ‘पंचवटी प्रसंग’ के सभी प्रमुख पात्र मानव रूप में चित्रित हुये हैं। अंतत: लक्ष्मण का कलात्मक आदर्श और राम का दार्शनिक विवेचन इस रचना को परिपूर्णता प्रदान करते है। प्रस्तुत रचना में कवि ने भावों और विचारों को ही प्रधानता दी है। अभिनय की दृष्टि से भी यह रचना सफल रहीं है।
इसके काव्यरूप के बारे में चर्चा करेंगे तो इस रचना को ‘नाट्यकाव्य’ की कोटी में रखना समीचित होगा; भलेहीं विद्वानों ने इसे काव्यनाटक या गीतिनाट्य नाम से क्यों न अभिहित किया हो। यदि अंतीम दृश्य को छोड़ दिया जाय तो घटनायें भी न के बराबर हैं, वहाँ पर सिर्फ राम, सीता एवं लक्ष्मण की बातें हैं, जिससे काव्यात्मकता हीं अधिक उभर कर आई है और नाटकीयता का स्पष्ट अभाव दिखायी देता है। नाट्यकाव्य की विशेषता को प्रतिपादित करनेवाली यह रचना मूलत: काव्य है। इसमें सिर्फ संवेदना की तीव्र अभिव्यक्ति के लिए नाटकीयता का आधार अपनाया गया है। इसीलिए हम कह सकते हैं कि निराला द्वारा लिखित ‘पंचवटी प्रसंग’ नामक मिथकीय धरातल पर आधारित एक सफल नाट्यकाव्य है।
संदर्भ ग्रंथ :
1. सूर्यकांत त्रिपाटी ‘निराला’ ट्ट ‘अनामिका’ में संग्रहित ‘पंचवटी प्रसंग’।
2. सूर्यकांत त्रिपाटी ‘निराला’ ट्ट ‘अनामिका’ में संग्रहित ‘पंचवटी प्रसंग’।
3. डा. दुर्गाशंकर मिश्र ट्ट महाकवि निराला का काव्य : एक विश्लेषण।
4. डा. दुर्गाशंकर मिश्र ट्ट महाकवि निराला का काव्य : एक विश्लेषण।
5. डा. दुर्गाशंकर मिश्र ट्ट महाकवि निराला का काव्य : एक विश्लेषण।
डॉ.राजश्री मोकाशी
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