Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

सीता : आधुनिक नारी के रूप में

 

 

साठोत्तरी काव्य-नाटकों में चित्रित सीता : आधुनिक नारी के रूप में

आधुनिक युग में काव्य-नाटक विधा का आविर्भाव हुआ। काव्य-नाटक एक एेसी विधा है जिसमें काव्यात्मकता और नाटकीयता का सम्मिश्रण देखा जाता है। काव्य तत्व में नाट्य-तत्व एेसे घुल-मिल जाते हैं कि पाठक को इससे एक विशिष्ट आनंद मिलता है। एेतिहासिक, सामाजिक, काल्पनिक, वैज्ञानिक, मिथकीय आदि पृष्ठभूमि पर अनेक काव्य-नाटक लिखे गये जिनका उद्धेश्य वर्तमानकालीन जटिल समस्याओं का उद्घाटन करना रहा है। साठोत्तरी युग में नारी समस्या को केंद्र में रखकर अनेक मिथकीय काव्य-नाटक लिखे गये। जब हम वर्तमानकालीन तत्कालीक समस्याओं से जूझ नहीं पाते तो हम प्राचीनता में, अतीत में अपना मुँह छिपा लेते हैं। अतीत की गाथाओं, चरित्रों के माध्यम से अतीत में प्रवेश करके अपने संदर्भ से नये संकल्प के साथ साक्षात्कार करते हैं। “कभी-कभी किसी युग में ठीक वैसे ही संदर्भ आ खड़े होते हैं जैसे किसी पूर्व युग में प्रस्तुत हुये थे और हम अतीत में प्रवेश करके अपने संदर्भ से नये संकल्प के साथ साक्षात्कार करते हैं।”1 सीता, द्रौपदी, कुंती, राधा आदियों के मिथ के माध्यम से आधुनिक नारी की स्थिती का चित्रण कर अपेक्षित सुधार
1. रामकमल राय, नरेश मेहता कविता की उध्र्वयात्रा, पृ सं ट्ट 77

की कवियों ने मांग की है। इस दृष्टि से प्रवाद पर्व एक प्रश्न मृत्यु, उर्वशी, एक पुरूष और, अग्निलीक आदि काव्य-नाटक उल्लेखनीय हैं।
साठोत्तर काल के कवियों ने सीता के चरित्रोद्घाटन में अधिक रूची दिखाते हुये अनेक काव्य लिखें, जैसे- सीता समाधी, जानकी जीवन, अरूण रामायण, भूमिजा आदि। उसी तरह प्रवाद पर्व, अग्निलीक, खण्ड-खण्ड अग्नि आदि काव्य-नाटकों में सीता के अत्यंत उदात्त रूप को चित्रित करते हुये आधुनिक नारी के संघर्षमयी जीवन को उजागर किया है। सर्वप्रथम सीता के पवित्र चरित्र का उद्घाटन वाल्मिकी ने रामायण में किया है। सीता का चरित्र भारतीय आदर्श नारियों में श्रेष्ठ रहा है। सीता का जीवन संघर्षमयी रहा। उन्हें अनेक विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। किंतु वे तनीक भी विचलित नहीं हुई, बल्कि त्याग की मिसाल बन कर रह गई। उनके चरित्र पर अनेक ग्रंत्य लिखें गये। ‘सीता समाधी’ काव्य के पूर्वप्रकाश में सीता के महत्व को उजागर करते हुये राजेश्वरी अग्रवाल जी ने कहा है “सीता ने सदैव सहा ही सहा और दिया ही दिया आदि से अंत तक सुख में भी, दु:ख में भी धरापर प्रकट होकर और समा कर भी।”2 साठोत्तरी कवियों ने सीता को आदर्श पत्नी, आदर्श बहू, आदर्श माता, आदर्श शिक्षिका आदि रूपों में चित्रित किया हैं। किंतु कुछ रचनाओं में सीता आधुनिक नारी के रूप में चित्रित हुई है जो अपनी ओर हुये अन्याय पर आक्रोश प्रकट करती है।
‘अग्निलीक’ नामक काव्य-नाटक में चित्रित सीता राम द्वारा परित्याग करने पर राम के अंतर्विरोधों को उघाड़ती ही नहीं, राम को राज्यलिप्सु, स्वार्थी सिद्ध करने की चेष्टा करते हुये कहती है:
1. सीता समाधी, पूर्वप्रकाश, पृ सं - 7

“दिन-रात आठों पहर बस इन्हें एक ही धुन थी
राज्य, राजनीति, संग्राम, विजय!
सोते-जागते हर पल ये राजा ही बने रहे
कभी प्रेमी नहीं बन पाये।”3
राम की राजसी गरिमा और कुकरनियों पर आक्रोश प्रकट करते हुए सीता कहती है-
“बनोबास देते समय इतना तो सोचते
कि जब उन्हें बनोबास मिला था
तो मैं उनके साथ गयी थी।
पर नहीं,
तब हम पति-पत्नी थे
हमारा धर्म एक था।
अब वे महाराज हैं,
और मैं उनकी प्रजा हूँ।”4
राम ने यदि प्रजा के प्रति अपने उत्तरदायित्व को निभाने के लिए सीता को वनवास भेजा था तो स्वयं अपनी अर्धांगनी के साथ वन क्यों नहीं चले गये? यह प्रश्न केवल सीता का नहीं अपितु जागरूक नारी का है। साधारण धोषी द्वारा उसकी पवित्रता पर उँगली उठाने से राम द्वारा परित्याग करने पर अग्निलीक की सीता जैसे आगबबुला होकर आक्रोश प्रकट करती है वैसे
1. भारत भूषण अग्रवाल, अग्निलीक, पृ सं ट्ट 44
2. भारत भूषण अग्रवाल, अग्निलीक, पृ सं ट्ट 14
‘प्रवाद पर्व’ काव्य-नाटक में चित्रित सीता भी अपने प्रवाद के बारे में सुनकर राम से कहती है:
“आपके लिए
हम या
हमारे ये संबंध
कब अर्थ रखते थे?
मैं जानती थी आर्यपुत्र! कि
इतिहास के निर्माता
घर परिवार की भाषा में
बातें नहीं किया करते
उन्हें तो दुर्गी, प्रसादों और युद्धों का व्याकरण ही
कण्ठाग्र होता है।”5
‘भूमिजा’ काव्य में चित्रित सीता भी स्वयं को अबला नहीं समझती :
“मुझे अबला न समझो
क्रोध पीकर शांत रहती हूँ
अहिंसा हूँ स्वयं सह कर
किसी से कुछ न कहती हूँ!”6

1. नरेश मेहता, प्रवाद पर्व, पृ सं 76
2. रघुवीर शरण मिश्र, भूमिजा, पृ सं ट्ट 37
वह अपने कलंक के साथ मरना नहीं चाहती थी। लोगों के सामने अपने निरपराधित्व को व्यक्त करते हुए कहती है :
“भूमि की लाड़ली हूँ मैं
कलंकित मर नहीं सकती
कलंकित मर धरा का मुख
स्याह में भर नहीं सकती।”7
सीता सी नारियाँ सदा अपने अधिकार के लिए संघर्ष करती आ रही हैं। सदियों पुरानी चार दिवारों की लक्ष्मण रेखा को लांघकर सामाजिक क्षेत्र में पदार्पण कर चुकी है। नारी पुरूष की अर्धांगिनी, सहगामिनी है, फिर भी उस पर अत्याचार, जुल्म ढोये जाते हैं। पुरूष प्रधान समाज में नारी को केवल भोग्या वस्तु समझा जाता है। नैतिकता-अनैतिकता के सारे प्रश्नों के लिए उसे ही उत्तरदायी समझा जाता है। सीता ने अपनी पवित्रता का प्रमाण अग्नि-परिक्षा से दिया जैसे- ‘खण्ड-खण्ड अग्नि’ काव्य-नाटक की सीता अग्नि-परिक्षा देते हुए कहती है-
“क्षमा नहीं किए जाओगे राम
सीता सी नारियों से
किसी भी युग में।”8
‘अरूण रामायण’ काव्य में चित्रित सीता राम की निर्दयता की ओर उँगली उठाने के लिए भी तत्पर हो जाती है-
1. रघुवीर शरण मिश्र, भूमिजा, पृ सं ट्ट 40
2. दिविक रमेश, खण्ड-खण्ड अग्नि, पृ सं - 78

“हे पावन पुरूषोत्तम।
तुम इतने हो कठोर
क्या अब न उठेगी कभी हृदय में जप हिलोर
हे महातपस्वी, योगी! तुम पाषाण आज”9
‘अग्निलीक’ की सीता इन सबसे एक कदम आगे बढ़कर क्रांतिकारी भावना रखनेवाली आधुनिक नारी है। वह केवल राम पर ही नहीं बरसती बल्कि दशरथ और कैकेयी पर भी व्यम्ग्य करती है-
“हाय वह पुरूष नारी के प्यार को क्या समझेगा
जिसके पिता ने तीन-तीन ब्याह रचाये हो
यह कितनी विचित्र बात है
कि इनके परिवार में
नारी प्रेम के बदले राज्य ही माँगती है
और पुरूष उनकी अनुचित माँग पर
अपने कर्तव्य को
अपने पुत्र स्नेह को
अपने धर्म तक को छोड बैठता है।”10
वह इतना ही बोलकर शांत नहीं रहती, उसके हृदय की आग शब्दबह होकर उसके मुँह से अंगारे बरसाती है-
1. रामावतार अरूण पोद्धार, अरूण रामायण, पृ सं ट्ट 627
2. भारत भूषण अग्रवाल, अग्निलीक, पृ सं - 47
“मैं दु:खी नहीं हूँ, मैं गरज रही हूँ
जो मेरे पति हैं,
हाय वे मेरे पुत्रों के पिता नहीं हैं
नहीं तो मैं आपको दिखा देती
कि नारी क्या कर सकती है।”11
सीता पर हुए अन्याय पर स्वयं केवल सीता ही आक्रोश प्रकट नहीं करती बल्कि ‘शंबुक’ नामक काव्य-नाटक में क्रोधित शंबुक राम से पूछता है-
“स्नेह था तो छोड देते
राम तुम भी राज्य
क्यों हुई केवल
तुम्हारे हेतु सीता त्याप्य।”12
‘खण्ड-खण्ड अग्नी’ काव्य-नाटक में लेखक ने सन्नाटा पात्र के माध्यम से नारी अस्मिता को जगाते हुये कहता है :
“जाग गया यदि स्त्रीत्व सीता में
तो हिल जाएगी नींव
रामत्व की भी।”13
इस प्रकार सीता उन महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती है जो पुरूषों द्वारा शोषित हैं। किंतु
1. भारत भूषण अग्रवाल, अग्निलीक, पृ सं ट्ट 43
2. जगदीश गुप्त, शंबुक, पृ सं ट्ट 57
3. दिविक रमेश, खण्ड-खण्ड अग्नि, पृ सं - 13
साठोत्तरी काव्य में चित्रित सीता अपनी ओर हुए अन्याय का डटकर विरोध करती है, परंपरा से चली आई व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह करती है। रामायण की सीता की तरह चुपचाप अपनी ओर हुए अन्याय को न सहकर आधुनिक नारियों की तरह अपने हक् के लिए लढ़ने का संदेश साठोत्तरी काव्य-नाटकों में चित्रित सीता के माध्यम से दिया गया है। इस तरह आदर्शता की मुर्ती सीता, साठोत्तरी काव्य-नातकों में आधुनिक नारी के रूप में चित्रित हुई है।

संदर्भ ग्रंथ ट्ट
1. प्रवाद पर्व - नरेश मेहता
2. अग्निलीक - भारत भूषण अग्रवाल
3. खण्ड-खण्ड अग्नि - दिविक रमेश
4. भूमिजा - रघुवीर शरण ‘मिश्र’
5. शंबुक - जगदीश गुप्त
6. अरूण रामायण - रामावतार अरूण पोद्धार
7. जानकी जीवन ट्ट राजाराम शुक्ल ‘राड्ढ्रीय आत्मा’
8. सीता समाधी ट्ट र्जेश्वरी अग्रवाल
9. हिंदी के काव्य-नाटक ट्ट डा.सुशीला सिंह
10. मिथक और आधुनिक कविता ट्ट डा. शंभुनाथ
11. मिथक: एक अनुशीलन ट्ट डा. मालती सिंह
12. आधुनिक कविता और मिथक ट्ट डा. पुष्पा गर्ग

 

 

 

 

डॉ.राजश्री मोकाशी

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ