Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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यादों के बादल

 

यादों के बादलों को
जब भी मैंने
बाहों में भरना चाहा
वे गडगडाते
शोर मचाते
चपलासे डराते
वर्षा बनकर
आँखों से बरस जाते
निर्झरिनी बनकर
अनजानी पगडंडियों से।

 

 

 

 

डॉ.राजश्री मोकाशी

 

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