यादों के बादलों को
जब भी मैंने
बाहों में भरना चाहा
वे गडगडाते
शोर मचाते
चपलासे डराते
वर्षा बनकर
आँखों से बरस जाते
निर्झरिनी बनकर
अनजानी पगडंडियों से।
डॉ.राजश्री मोकाशी
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यादों के बादलों को
जब भी मैंने
बाहों में भरना चाहा
वे गडगडाते
शोर मचाते
चपलासे डराते
वर्षा बनकर
आँखों से बरस जाते
निर्झरिनी बनकर
अनजानी पगडंडियों से।
डॉ.राजश्री मोकाशी
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