हाँ, मै खुद का ईष्ट हूँ और अभीष्ट हूँ
क्योंकि मै कोई जाति नहीं हूँ
प्रजाति भी नहीं हूँ
मै प्रवाह हूँ
समय का क्रमवार
सतत, शाश्वत अनथक, पुरातन
दिक्-दिगंत व्याप्त चेतन
साकार-निराकार
विश्व-राष्ट्र-समाज-परिवार
तुम खोजो अपनी हद
सीमाएं, किनारे और पडाव
मै ब्राह्मण-चांडाल
पावन-अछूत,
हन्दू-मुसलमान
भगवान-शैतान
तुम खोजो अपनी सीमित ऊंचाइया
अपनी अनंत नीचाइया
मै अनंत का एक अंश
जीवंत उद्घोष
आत्मप्रकाश
मेरा गेह
अनंत नीलाकाश
डा० रमा शंकर शुक्ल
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