Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अनंत

 

हाँ, मै खुद का ईष्ट हूँ और अभीष्ट हूँ
क्योंकि मै कोई जाति नहीं हूँ
प्रजाति भी नहीं हूँ
मै प्रवाह हूँ
समय का क्रमवार
सतत, शाश्वत अनथक, पुरातन
दिक्-दिगंत व्याप्त चेतन
साकार-निराकार
विश्व-राष्ट्र-समाज-परिवार
तुम खोजो अपनी हद
सीमाएं, किनारे और पडाव
मै ब्राह्मण-चांडाल
पावन-अछूत,
हन्दू-मुसलमान
भगवान-शैतान
तुम खोजो अपनी सीमित ऊंचाइया
अपनी अनंत नीचाइया
मै अनंत का एक अंश
जीवंत उद्घोष
आत्मप्रकाश
मेरा गेह
अनंत नीलाकाश

 

डा० रमा शंकर शुक्ल

 

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