Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चाह है मेरी

 

चाह है मेरी यही कि
एक हिमगिरी और रच दूं
इस अँधेरी राह पर एक
सूरज सहज ही धर दूं.
पर कहाँ ऊंचा उठा
चेतना का ज्वार यूं
ठोकरों में जी रहे हैं
फिर हिमालय चाह क्यूं.
पर न हारूंगा मै कभी
चोटियाँ रचता रहूँगा
जब तलक जीवन है मेरा
सच को सच कहता रहूँगा.

 

 

डा० रमा शंकर शुक्ल

 

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