उसे मैंने बुलाया था. अलसुबह. एक मासूम, पीली सी महकती छाया सी वह घर में दाखिल हुई. वैधव्य का दर्द चहरे पर साफ़ दिख रहा था.
क्या यह सच है कि तुम्हारा "उससे" सम्बन्ध है?
नहीं. उसने मेरे दुर्दिन में साथ दिया है. मै कभी अकेले ही नहीं रही तो सम्बन्ध का औचित्य ही नहीं बनता.
तो फिर इतनी बातें हवा में कैसे तैर रही हैं?
मुझे नहीं मालूम कि हवा किधर से बही? पर जितना सच था बता दिया. जो सच है उसकी साक्षी हैं भ
गवती दुर्गा. गलत कही होऊँ तो वे हमें दण्डित करें.
तो फिर अफवाह वाले कौन हैं यह भी तो पता होगा?
जी, मेरी सगी बहन और चचेरे भाई.
दोनों से रिश्ता क्यों नहीं तोड़ देती. उसकी आँखें डबडबा आयीं. दो बूँद आँचल में टपक पड़े. बोली, क्या बताऊँ. वे लोग चाहे जो कह रहे हों, पर मै उनके बारे में तो किसी से कुछ नहीं कह सकती. क्योंकि वे मेरे अपने हैं. बस यहाँ तक समझ लीजिये कि बूढी औरत को भी चचेरे भाई ने नहीं छोड़ा. उनकी निगाह उसकी दौलत पर है. बहन भी हमारी ...........जाने दीजिये. मुझे कुछ नहीं कहना.
तो फिर एक काम करो. जब बाहर के लोग घर में लगातार घुसते हैं तो घर चौराहा हो जाता हैं. घर और चौराहे में फर्क करना ही होगा.
वह शांत थी. उसे रास्ता शायद मिल गया था. अब वह पीली छाया नहीं. वह आग की तरह लाल है. वह घर को चौराहे से बचाने को जा रही है.
डा० रमा शंकर शुक्ल
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