कैसे-कैसे मंजर हैं
शब्द फूल करनी खंजर हैं
हम और हमारी औलादें
रहें सलामत मालामाल
बाकी माने बंजर हैं.
हद है यार एक साबूत आदमी
ढूंढें नहीं मिला आखिरी दम तक लड़ने वाला!
मझधार में सब छोड़ गए बंधू-बांधव तक!
यह नाव भी न जाए डूब
बस इसी बात का डर है.
डा० रमा शंकर शुक्ल
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