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दिल में तांडव

 


डा० रमा शंकर शुक्ल



जब तक भारत की आजादी स्पष्ट नहीं होती
सत्ता में गद्दारों की मंशा नष्ट नहीं होती
जब तक खेतों को पानी-खाद नहीं मिलता
जब तक गाँव गरीब का चेहरा नहीं खिलता
किस मुह से गीत लिखूं ऐ भारत के लोगों
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

जब तक पगडंडी तक से कब्जे नहीं हटते
विधवाओं को पेंशन के सुख नहीं मिलते
औरत निज घर सही सलामत नहीं लौटती
हर अनाथिनी के माथे पर बेदी नहीं चमकती
किस खुशियाली में सरकारों का गुणगान करूँ
लोकतंत्र में कायरता का इन्साफ झलकता है.
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

जब तक देश की हर मण्डी दलाल मुक्त नही होती
पहरेदारों की आत्मा जगकर चुस्त नहीं होती
जब तक अस्मत के सौदागर लतियाये नहीं जाते
मंदिर-मस्जिद से सारे ढोंगी भगाए नहीं जाते
किस आतंरिक संतुष्टि से लोकतंत्र का नाम जपूँ
उन शहीदों का मानस कैसा लहूलुहान तड़पता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है..

 

जब तक दारू-पैसे पर वोटों के ईमान बिकेंगे
लोकतंत्र के मंदिर में गद्दारों के ताज सजेंगे
जब तक सत्ता खातिर खैरातों की बरसात चलेगी
आरक्षण पर बेईमान अमीरों की बरात सजेगी
किस महानिलय से मिलने का इंतजाम करूँ
दिल के मंथन में विष का सामान निकलता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

दलदल वासना से जब तक पौधे कांटेदार उगेंगे
सांप-सपोलो के दल भारत में नित जहर भरेंगे
जब तक कीट-पतंगों सी भारत की आबादी बल्केगी
सोलहवे बेटे के जन्म पर भी सोहर की धुन खनकेगी
मै गीत नहीं लिखूंगा, प्रीत नहीं करूंगा रमणी से
मै एक पांचजन्य सुनता हूँ, उर में महाभारत बसता है.
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

ऐ भारत की मिट्टी में उगने-पलने वाले नौजवानों
ऐ भावी भारत के निर्माता भारत के भगवानों
अंग्रेजों के आघातों से भी ज्यादा माँ अब घायल है
गद्दारों ने पहना दिया उसे काँटों का पायल है
उसके जख्मी पांवों पर मरहम आज लगाना होगा
मेरे शब्द काँप रहे हैं, मुझमे मेरा राष्ट्र दहकता है.
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

तुम ठाकुर-बाभन बनकर कब तक द्वेष बिखेरोगे
तुम दलित-नारी बनकर, कब तक नाक सिकोड़ोगे
एक जमीं है एक राष्ट्र है एक तंत्र है हम सबका
एक प्रभु के परम तेज से आलोकित हर तबका.
बंटते-बंटते कितने तुच्छ हो गए हम भारतवासी
हर मुल्क अब भारत को बंटवारे का देश समझता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

जब तक राष्ट्र का हर नागरिक "आदमी" नहीं बन जाता
एक टुकड़ा रोटी टुक्कर का मिल-बाँट नहीं वह खाता
जब तक राष्ट्र द्रोहियों के प्रति अंतर्मन घृणा नहीं करेगा
दिल में गद्दारों के प्रति नफ़रत का सैलाब नहीं भरेगा
व्यर्थ रहेगा भारत का विकास, यह मानवता रोयेगी
\जंगल का पशु भी हित अनहित का अर्थ समझता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.


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खुद सुधरो ऐ गाँव-गरीबों, फिर नेता को धिक्कारो
अपना पेट निहारो पहले, फिर सत्ता को ललकारो
हर पंचायत का दागी चेहरा तेरी करतूतों का फल है
उनकी मक्कारी- सीनाजोरी में तेरा ही तो बल है.
आदमीनुमा कितने चेहरों में मिलती मानवता है!
मुझे कालनेमियों को मुनि का सम्मान अखरता है .
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

जब लौ तमीज आदमी की तुम धारण नहीं करोगे
श्रम-स्वेद से ज्यादा का हक़ पाने को दाँत चियारोगे
खुद की लालच रोक न पाए, क्यों नेता को धिक्कारोगे
निज स्वार्थ से जो उठे नहीं तो समर सदा तुम हारोगे
बनो नागरिक जिम्मेदार, घटियापन का त्याग करो
पाखंडी के उपदेशों को सुन मेरा तो खून बलाकता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

यह चाणक्यों का देश यहाँ राष्ट्रधर्म सर्वोपरि है
राणाप्रताप का हठ हो, भोजन चुनी चोकर है
त्याग दधीचि से सीखो यह मरण सदा अनमोल है
आत्मा ही शाश्वत है प्रिय, यह तन केवल खोल है
तन सुख की खातिर कब तक ईश्वर का होम करोगे
हबर है हम, यह मै नहीं, भारत माँ का दिल कहता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

सुनो-सुनो-सुनो हम सब हत्यारे हैं जंगल और पहाड़ों के
हम बलात्कारी हैं झरनों-नदियों, बादल-बाग़-बहारों के
प्रकृति का आँचल खून सना है, खंजर हैं ठेकेदारों के
वन विभाग की चोट्टी कुतिया साथ लगी मक्कारों के
गुस्से में मानसून है, लडखडाता जग में आता है
खेतों से प्यार के कारण ही घर से बेमन चलता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

पौधों की हत्याओं पर हम सबका आवास बना है
डरता है वह मानव से, ज्यों बोलना उसे मना है
हम पांच गुना बढ़ गए पर पेड़ लगाए हैं कितने?
पत्थर का शीस उतारे गर तो, शीस लगाए कितने?
ऐ हवेली वालों आओ देखो, यह जंगल कैसा रोता है
फिर भी अपनी संवेदना पर यह मानव रोज बहकता है.
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

बूढा पनघट खामोश पड़ा है, बारिश में है साँसे चलती
हम सब की प्यास बुझाते सूख चुकी है यह धरती
गगनचुम्बी पेड़ों के तन से मानव तेरा महल सजा है
और वनों के घर में केवल झंखाड़ों का अवशेष गजा है
एक बार भी बढ़कर जो तुम बेटे सा पेड़ लगाए होते
तुम जैसे मानव से मुझको जीव-जंतु प्यारा लगता है.
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

तुम ठाकुर-बाभन बनकर कब तक द्वेष बिखेरोगे
तुम दलित-नारी बनकर, कब तक नाक सिकोड़ोगे
एक जमीं है एक राष्ट्र है एक तंत्र है हम सबका
एक प्रभु के परम तेज से आलोकित हर तबका.
बंटते-बंटते कितने तुच्छ हो गए हम भारतवासी
हर मुल्क अब भारत को बंटवारे का देश समझता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

हर जहन में कपट भरा है मुह में राम बगल में छूड़ी है
सांसद-सन्यासी एक तरह के बातों से करनी की दूरी है
सब उपदेश हमारे खातिर भोग सदा सब उनके हिस्से
पर उपदेश कुशल बहुतेरे, एक नहीं घर-घर के किस्से
जान रहे हैं, मान रहे हैं पर दहेज़ प्राणों से प्यारा है
मात-पिता के सौदों से बेटी का दिल रोज सिसकता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

सोने का कंगन ले के बूढ़े सिंह शिकार करेंगे जब तक
घर जंगल होगा वनवासी परिजन मरा करेंगे तब तक
आधी आबादी नौकर जैसा खुद को मानेगी जब तक
खुद के मानव होने की आशंकाएं घिरी रहेंगी तब तक
पुरुषों के स्वामीपन का दंश भाभायेगा भारत भर में
नारी की आहों से जलकर रोज हमारा देश दहकता हैं.
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

जाति लिंग के पैमाने पर मानवता का मूल्यांकन होगा
जब तक लंका से लौटी सीता का अग्नि परिक्षण होगा
दौलत के दम लाचारों की अस्मत जब तक लूटी जायेगी
जेठ-ससुर संग सास-ननद मिल औरत के सपने खायेगी
प्रेम-पंथ पर रहबर होंगे, घर-घर लंका सा मंजर होगा
कहो कभी छल में भी भला प्रेम का निर्झर बहता है?
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

जहाँ दिलों की सरहद खुदगर्जी के छोरों पर जा टिकती हो
जहाँ शब्दों की दरिया विनिमय के घाटे में जा सुखती हो
व्यवहारों के बटखरों से जहाँ प्रेम स्वर्ण भी तौले जाते हों
जहाँ प्रिय के शिकवे पर भी प्रेमी के दिल खौले जाते हों
उन हृदयों की कंगाली पर किस दरियादिल की बात करें
नए विश्व की नदियाँ हैं ये, मझधारों में भी रेती बसता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

टुकड़ों में बंट चुका वक्त किस पूर्णता की अभिव्यक्ति करेगा
निर्माता ही जिन्दा रहते हैं विध्वंसक मरा है सदा मरेगा
जो रिश्तों को तौल रहे हैं किस बिरते पर वे प्यार करेंगे
दिल चम्मच चलनी दिमाग है कहाँ घुलेंगे कहाँ भरेंगे.
निष्काम प्रेम जो कर पाओ सारा आकाश तुम्हारा होगा
यह प्रेम पंथ है युद्ध भूमि सा मरने वाला जिन्दा रहता है.
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

जज्बातों के सौदागर घूम रहे हर चीज जहाँ बिकाऊँ है
ढुलमुल हैं हर लोग यहाँ पर बस स्वार्थ यहाँ टिकाऊ है
हंसी ठिठोली, न्याय, गीत, बल मठ संसद एक तरह से
बिकते शिक्षा मंदिर, मदिरालय नीति-धर्म एक तरह से
मेरे भीतर एक कबीरा घुट-घुट कर कैसे जीवन जीता है
किस अंध कूप में भटक रहे हम हर घर मंडी लगता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

आँखों में आंसू बिकते, गालों की लाली हंसी-ठिठोली भी
बिकते हैं जज्बात जिगर के भूख, भाव तन चोली भी
नींद-नारि-भोजन बिकते, श्रद्धा-विश्वास-जवानी भी
बिक चुका है देश हमारा संप्रभुता की लिखी कहानी भी
नख-सिख मानव बाज़ार बना है शब्द ढाल है आरोपों पर
पक्षपात में भीष्म सा योद्धा सर सय्या पर मरता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

हर जमीर बिकाऊ जग में सही दाम लगाने वाला हो
हर समस्या का समाधान है कोई काम कराने वाला हो
सबसे सस्ती बात हुई है मोल-भाव की दरकार नहीं है
जिसकी बोली ऊंची होगी उसकी ही हर बात सही है
महापुरुष सब ग्रंथों की शोभा बस पूजन के काबिल हैं
यही सभ्यता का परम विकास है प्रगतिशील यह कहता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है.

 

धत तेरे की ये घर है, आपस में ही डर है, दिल बंजर .
कनबतियों में भूक रहे हैं शब्दों के सिर खूनी खंजर
गृह देव ललाते रहते घर-घर बरम भवानी को मेवा
मनमोहन जी रजा जिसके, ओबामा जी की सेवा.
घूघट से घर की इज्जत वातायन से झाँक रही है
दम मारे स्वामी टहले, कैसे उसका दिल सहता है
मेरे मन में प्रीत नहीं एक तांडव बसता है.

 

घोर घमंडी गृहस्वामी हैं, घरनी जैसे ज्वाला
उजली-उजली बातें हैं बस, कर्म सदा है काला
चेहरा-चेहरा सौ-सौ चेहरा चुप्पी साधे बैठा है
बेटी की शादी है फिर भी चाचा कैसे ऐठा है
एक मंथरा एक विभीषण महायुद्ध को काफी हैं
अब तो घर-घर मंथरा घर-घर शकुनी रहता है.
मेरे मन में प्रीत नहीं एक तांडव बसता है.

 

किस बिरते पर दंभ भरूँ मै भारत का रहने वाला हूँ
सद्ग्रंथों का अनुकर्ता हूँ संस्कृति का रखवाला हूँ
जिन ग्रंथों में मानवता से नफ़रत का सन्देश मिले
बहुसंख्यक अंतर्मन झुलसे कुछ के चहरे खिले खिले
देवों जैसे पूजित कुछ तो बहुतों को मीरा का प्याला
ऐसे मनुओं की बानी से नफ़रत का सैलाब छलकता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है

 

कहता है इतिहास जहाँ का नफ़रत की गौरव गाथा
और पुराणो में मंडित हों छल के शातिर व्याख्याता
जाति धर्म के मकडजाल में बभनौटी चमरौटी हो
आडम्बर से आह़त होकर रोंती करूणा लौटी हो
नीति-नियंता उन ऋषियों को कैसे श्रद्धा भर पूजूं
बहुत तुच्छ है मेरा भारत शम्बूक जहाँ नित मरता है
मेरे दिल में प्रीत नहीं एक तांडव चलता है

 

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