हे मेरे राम, रहीम, ईसा
जो भी हो तेरा नाम-गाँव
क्या तुम मुझे वह दृढ़ता
दे सकोगे
जो स्वार्थ से उठकर
अपयश से बेपरवाह
किसी भी जाती, धर्म, सम्प्रदाय के
किसी भी स्त्री-पुरुष
बच्चे-बूढ़े-जवान
का दर्द सोखने की ताकत खड़ी कर दे.
हे मेरे राम, रहीम, ईसा
क्या तुम मेरी सीमाएं
छीन कर असीम कर सकते हो
कि मै युग के अनुरूप
अपने को ढाल सकूं
और
अपने मन में पूरी कायनात पाल सकूं!
डा० रमा शंकर शुक्ल
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