असीम को राजा का न्याय
यही कोई पचीस साल पहले जब मै छोटा सा था, मेरे दादा ने एक कहानी सुनाई थी. राज्य के उस गरीब आदमी असीम की जब कहीं सुनवाई न हुई तो एक दिन उसने बड़ा निर्णय ले लिया. कुछ दिन बाद राजा का काफिला निकला. मार्ग के दोनों और खड़ी प्रजा ने "महाराज की जय" का उद्घोष किया. सैनिक और सेनापति प्रजा को सूंघते हुए से चल रहे थे. अचानक दनदनाता हुआ एक पत्थर हवा में तैरता आया और राजा के सर पर धडाम
से लग गया. माथे से खून के फब्वारे निकल पड़े. चारों और हाहाकार मच गया. कौन मारा कौन मारा? सेना प्रजा पर पिल पड़ी.
अचानक एक गंभीर ध्वनि हवा में गूंजी, "मैंने मारा. गरीबों को क्यों परेशान कर रहे हो.
असीम को बंदी बना लिया गया. दूसरे दिन उसे राज दरबार में पेश किया गया. राजा पर हमले का अभियोग लगा. राजा ने गरीब से अपनी सफाई देने को कहा.
गरीब असीम ने बिना डरे पूरी दृढ़ता से कहा, महाराज! लम्बे समय से मै आप तक पहुँचाना चाहता हूँ, पर हर बार आपके सैनिक और कर्मचारी हमें रोक देते थे. कई बार मुझे मारा-पीटा गया. हार कर मैंने यह तरीका अपनाया.
राजा ने मुलाकात का कारण पूछा. असीम ने बताया, महाराज आपके कर्मचारी फसल सूख जाने के बाद भी लगान वसूल रहे हैं. यहाँ तक कि न देने पर बच्चों-महिलाओं पर भी जुल्म ढाने लगे. मैंने इसका प्रतिवाद किया. मुझे प्रताड़ित किया गया. मै आपको बताना चाहता था कि यदि आपकी प्रजा भूखी हो तो क्या आपको अपने ऐश-आराम पर इतना अधिक खर्च करने की जरूरत है? अब मै निश्चिन्त हूँ. मैंने अपनी बात सही जगह पंहुचा दी. अब आप सजा सुनाएँ.
राजा ने फैसला सुनाया, "असीम का उद्देश्य सही था, बस रास्ता गलत था. इसलिए उसे निर्दोष मानते हुए बाइज्जत बरी किया जाता है. साथ ही उस पर पूर्व में किये गए हमले के आरोपियों का एक-एक माह का वेतन काट कर गरीब को देने का हुक्म दिया जाता है. आज से यह भी तय किया जाता है कि यदि हमारी प्रजा का एक भी आदमी भूखा सोता है तो बदले में मै तीन दिन तक भोजन नहीं करूंगा.
उस दिन के बाद राज्य का हर काम नियमसंगत ढंग से चलने लगा.
फिर राज्य में लोकतंत्र हो गया. नए तरह के राजा हुए. अत्याचार और बढ़ गया. प्रजा अपने लिए कुछ भी योजना न बना पाती. लोकसेवक और उसके कारिंदे फर्जी योजना बनाकर सारा धन लूट लेते. असीम ने लोक सेवकों की करतूत सबसे बड़े लोकसेवक कम राजा के पास पहुचाने के लिए नया तरीका निकला. उसने राज्य के ध्वज पर लिख दिया "भ्रष्टमेव जयते". इस बार सीधे सबसे बड़े लोकसेवक कम राजा ने आदेश दिया. असीम को राज द्रोह दिया जाय. अब असीम निरुपाय हो गया. प्रजा चिल्ला रही है, लोक सेवक संतुष्ट है. उसने प्रजा को फरमान सुनाया, जो राज्य के साथ ऐसी हरकत करेगा, उसे ऐसे ही दंड का भागीदार होना पड़ेगा.
डा० रमा शंकर शुक्ल
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