मैंने प्रवीण तोगड़िया जी से पूछा, "मान्यवर हमें बताने का कष्ट करें की आप किसके हैं? भारतीयों के? हिन्दुओं के? भाजपा के? या फिर मानवता के शत्रुओं के?
उन्होंने कहा, "हिन्दुओं के और भारत के और इससे भी ज्यादा श्री राम के"
"तो फिर सौगंध राम की खाते हैं मदिर वही बनायेंगे, राम लाला हम आयेंगे. का क्या हुआ?"
"हम लगे हैं. एक दिन हमारा सपना जरूर पूरा होगा."
"राम ने तो आपको उत्तर प्रदेश और भारत की गद
्दी भी दे दी, आपने क्यों नहीं बनाया?"
"सही समय नहीं मिल सका. हमें हजारों कार सेवकों का बलिदान कभी न भूलेगा."
"बहुत अच्छा जनाब. तो कृपया यह बताइये की हजारों कार सेवकों के साथ एक जोशी, एक सिंघल, एक वाजपेई, आडवानी, ऋतंभरा, उमा भारती और प्रवीण तोगड़िया भी क्यों नहीं बलिदान हो गए?"
"...................."
"अच्छा छोडिये, यह बताइये की राम मंदिर का मामला तभी क्यों उठाते हैं, जब चुनाव नजदीक आ जाता है?"
"हमारा भाजपा से कोई लेना देना नहीं है. जो राम के साथ है हम उसके साथ हैं."
"तो फिर आप राजीव गाँधी या फिर नरसिंघा राव के साथ क्यों नहीं हैं? "
".............................."
आखिरी सवाल, "अभी कितनी जानें लेने के बाद आप लोग शांत होंगे?"
"आप कांग्रेसी हैं. इसीलिए बेसिर-पैर के सवाल कर रहे हैं>"
"नहीं मै भारत का आम आदमी हूँ. और आपकी जानकारी के लिए बता दूं की मै पांच साल तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् में रहा हूँ. बड़े पद पर. लेकिन इन पांच सालों में आपको ठीक से समझ लिया, इसलिए आपके समूचे छद्मवेशी कुनबे को छोड़ दिया. जैसे राम ने आपको छोड़ दिया. राम तो हिन्दू-मुसलमान सबके हैं. सब उनके बच्चे हैं. आप उन्हें बांटने चले थे. मात्र एक घर का सवाल था. राम ने तो पूरा राज्य ही छोड़ दिया था. आपने राम को भारत के खिलाफ खडा करने की कोशिश की थी. अब मै पत्रकार हूँ.
डा० रमा शंकर शुक्ल
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