रमा शंकर शुक्ल
रक्तबीज-से बढे दरिन्दे
कैसे-कैसे रिश्तों के फंदे
रिश्तो में भी कालनेमि है
क्या करेंगे हनुमान परिंदे।
कही पे भाई कही पिता हैं
विश्वासों का आधार मिटा है
किनको-किनको फांसी दे दूं
रिश्तो की गरमाहट में धंधे।
कहाँ सुरक्षित अस्मत मेरी
जातियां मेरी हों या तेरी
खूनी आँखे घूर रही हैं
शैतानो से मठ के बन्दे।
हक्का-बक्का हर चेहरा है
साए पर भी खुद का पहरा है
वक्त सुनामी बनकर आया
रोने को न बचे हैं कंधे।
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